आंसु

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हम सिर्फ दुख में ही रोए हैं, हम कभी आनंद में नहीं रोए हैं। इसलिए आंसुओं के साथ हमने दुख की अनिवार्यता बांध ली है। लेकिन आंसुओं का कोई संबंध दुख से नहीं है। आंसुओं का संबंध ओवरफ्लोइंग से है। मन का कोई भी भाव मन की सीमा के पार हो जाए तो आंसुओं में बहना शुरू हो जाता है, कोई भी भाव! दुख ज्यादा हो जाए तो आंसुओं में बहता है, सुख ज्यादा हो जाए तो आंसुओं में बहता है, प्रेम ज्यादा हो जाए तो आंसुओं में बहता है, क्रोध ज्यादा हो जाए तो आंसुओं में बहता है। लेकिन चूंकि हमने दुख के ही आंसू देखे हैं--वही ज्यादा हुआ है, आनंद कभी इतना ज्यादा हुआ नहीं कि आंसुओं में बह जाए--इसलिए हमने आंसुओं का एसोसिएशन दुख से बना रखा है। दुख का आंसुओं से कोई संबंध नहीं है, आंसुओं का संबंध ओवरफ्लोइंग से है। जो हमारे भीतर ज्यादा हो जाता है, वह आंसुओं से बह जाता है।भक्त भी रोता है, प्रेमी भी रोता है, आनंद में ही रोता है। और यह जो आनंद की पीड़ा है, यह जो आनंद का दंश है, यह जो आनंद के कांटे की चुभन है, ये जो आनंद के आंसू हैं, इनका दुखवाद से कोई भी संबंध नहीं है।

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