परमात्मा होने की घोषणा
जीवन में तो सुख और दुख दोनों हैं। सब कुछ निर्भर करता है व्यक्ति पर कि वह क्या देखता है। मेरी अपनी समझ ऐसी है कि अगर कोई आदमी गुलाब के फूल को ठीक से देख पाए और प्रेम कर पाए, तो उसे कांटे दिखाई पड़ने बंद हो जाते हैं। क्योंकि जो आंखें गुलाब के फूल से रस जाती हैं, रम जाती हैं, वे आंखें कांटों को देखना बंद कर देती हैं। ऐसा नहीं कि कांटे मिट जाते हैं, बल्कि ऐसा कि कांटे भी गुलाब के साथी और मित्र हो जाते हैं और वे गुलाब के फूल की रक्षा की तरह ही दिखाई पड़ते हैं। वे एक ही पौधे पर फूल की रक्षा के लिए निकले हुए कांटे होते हैं। लेकिन जो आदमी कांटों को चुन लेता है, उसे फूल दिखाई पड़ना बंद हो जाता है। जो आदमी कांटों को चुनता है, वह यह कहेगा कि जहां इतने कांटे हैं वहां एक फूल खिल कैसे सकता है? जहां कांटे ही कांटे हैं, वहां फूल असंभावना है। जरूर मैं किसी भ्रम में हूं कि मुझे फूल दिखाई पड़ रहा है। जहां कांटे ही कांटे हैं, वहां फूल हो नहीं सकता। कांटा सत्य हो जाता है, फूल स्वप्न हो जाता है।और जो आदमी फूल को देख लेता है, और देख पाता है और प्रेम कर पाता है और जी पाता है, उस आदमी को एक दिन लगना शुरू होता है कि जिस पौधे पर गुलाब जैसा कोमल फूल खिलता हो, उस पौधे पर कांटे कैसे हो सकते हैं! उसके लिए कांटे धीरे-धीरे भ्रम और झूठ हो जाते हैं। फूल स्वतंत्रता है और कांटे परतंत्रता, मर्जी है आदमी की कि वह क्या चुने। स्वतंत्रता है आदमी को कि वह क्या चुने। सार्त्र का एक वचन बहुत अदभुत है; उसमें वह कहता है: वी आर कंडेम्ड टु बी फ्री। हम मजबूर हैं स्वतंत्र होने को। जबरदस्ती है हमारे ऊपर स्वतंत्रता। हम सब चुन सकते हैं, सिर्फ एक स्वतंत्रता को नहीं चुन सकते, वह हमें मिली ही हुई है। कोई आदमी यह नहीं कह सकता कि मैं परतंत्रता चुन सकता हूं, क्योंकि वह चुनना भी उसकी स्वतंत्रता ही है। इसलिए सार्त्र कहता है: कंडेम्ड टु बी फ्री। कभी भी स्वतंत्रता के साथ किसी ने कंडेम्ड शब्द का प्रयोग नहीं किया होगा। मनुष्य स्वतंत्र है। और परमात्मा के होने की यह घोषणा है।
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