प्रेम: सपना होना चाहिए और टूटना चाहिए


जितनी जल्दी टूट जाए, उतना सौभाग्य है। क्योंकि यहां से आंखें मुक्त हों तो आंखें आकाश की तरफ उठें; बाहर से मुक्त हों तो भीतर की तरफ जाएं

प्रश्न: क्या इस जगत में प्रेम का असफल होना अनिवार्य ही है? इस जगत का प्रेम तो, चैतन्य कीर्ति, असफल होगा ही। उसकी असफलता से ही उस जगत का प्रेम जन्मेगा। बीज तो टूटेगा ही, तभी तो वृक्ष का जन्म होगा। अंडा तो फूटेगा ही, तभी तो पक्षी पंख पसारेगा और उड़ेगा। इस जगत का प्रेम तो बीज है। पत्नी का प्रेम, पति का प्रेम; भाई का, बहन का, पिता का, मां का, इस जगत के सारे प्रेम बस प्रेम की शिक्षणशाला हैं। यहां से प्रेम का सूत्र सीख लो। लेकिन यहां का प्रेम सफल होने वाला नहीं है, टूटेगा ही। टूटना ही चाहिए। वही सौभाग्य है! और जब इस जगत का प्रेम टूट जाएगा, और इस जगत का प्रेम तुमने मुक्त कर लिया, इस जगत के विषय से तुम बाहर हो गए, तो वही प्रेम परमात्मा की तरफ बहना शुरू होता है। वही प्रेम भक्ति बनता है। वही प्रेम प्रार्थना बनता है। हमारी इच्छा होती है कि कभी टूटे न।

कभी तिलिस्म न टूटे मेरी उम्मीदों का
मेरी नजर पे यही परदाए-शराब रहे

हम तो चाहते ही यही हैं कि यह परदा पड़ा रहे, टूटे न। यह जादू न टूटे! लेकिन यह जादू टूटेगा ही, क्योंकि यह जादू है, सत्य नहीं है। कितनी देर चलाओगे? जितनी देर चलाओगे, उतना ही पछताओगे। जितनी जल्दी टूट जाए, उतना सौभाग्य है। क्योंकि यहां से आंखें मुक्त हों तो आंखें आकाश की तरफ उठें; बाहर से मुक्त हों तो भीतर की तरफ जाएं।
हद्दे-तलब में गम की कड़ी धूप ही मिली
जुल्फों की छांव चाह रहे थे किसी से हम

यहां कोई जुल्फों की छांव नहीं मिलती, यहां तो कड़ी धूप ही मिलती है। यहां तो तुम जिसको प्रेम करोगे उसी से दुख पाओगे। यहां प्रेमी दुखी ही होता है। सुख के सपने देखता है! जितने सपने देखता है, उतने ही बुरी तरह सपने टूटते हैं। इसीलिए तो बहुत से लोगों ने तय कर लिया है कि सपने ही न देखेंगे। प्रेम का सपना न देखेंगे, विवाह कर लेंगे। न रहेगा सपना, न टूटेगा कभी। इसीलिए तो लोग विवाह पर राजी हो गए। समझदार लोगों ने प्रेम को हटा दिया, उन्होंने विवाह के लिए राजी कर लिया लोगों को।

लेकिन विवाह का खतरा है एक—सपना नहीं टूटेगा, यही खतरा है। सपना टूटना ही चाहिए। सपना होना चाहिए और टूटना चाहिए। बड़ा सपना देखो, डरो मत; मगर टूटेगा, यह याद रखो। रूमानी सपने देखो; मगर टूटेंगे, यह याद रखो। यहां जुल्फों की छांव मिलती ही नहीं, यहां हर जुल्फ की छांव में धूप मिलती है, कड़ी धूप मिलती है।

दागे-दिल से भी रोशनी न मिली
यह दिया भी जलाके देख लिया

जलाओ दीया। जलाना उचित है। इसलिए मैं प्रेम के खिलाफ नहीं हूं। और इसलिए मेरी बातें तुम्हें बड़ी बेबूझ मालूम पड़ती हैं। तुम्हारे तथाकथित संतों ने तुमसे कहा है: प्रेम के विपरीत हो जाओ। मैं प्रेम के विपरीत नहीं हूं। मैं कहता हूं: प्रेम करो, देखो, जानो, जलो! हालांकि प्रेम का सपना टूटेगा।

और अगर ठीक से तोड़ना हो सपना, तो ठीक से उसमें जाना जरूरी है। भोग में उतरोगे तो ही योग का जन्म होगा; राग में जलोगे तो विराग की सुगंध उठेगी। जो राग में नहीं जला, वह विराग से वंचित रह जाएगा। और जिसने भोग की पीड़ा नहीं जानी, वह योग का रस कैसे पीएगा?

इसलिए मेरी बातें तुम्हें बहुत बार उलटी मालूम पड़ती हैं। मैं कहता हूं, अगर योगी बनना है तो भोगी बनने से डरना मत। भोग ही लेना। उसी भोग के विषाद में से तो योग का सूत्रपात है। जब तुम देखोगे, देखोगे, देखोगे, दुख पाओगे, जलोगे, तड़फोगे, जब सब तरह से देखोगे...

दागे-दिल से भी रोशनी न मिली
यह दिया भी जलाके देख लिया

जब रोशनी मिलेगी नहीं, अंधेरा बना ही रहेगा, बना ही रहेगा, एक दिन तुम सोचोगे कि मैं जो दीया जला रहा हूं वह दीया जलने वाला दीया नहीं है, तब मैं तलाश करूं उस दीये की जो जलता है। और वह दीया सदा से जल रहा है। जरा लौटोगे पीछे और उसे जलता हुआ पाओगे। वह दीया तुम हो।

बुझ गए आरजू के सब चिराग
एक अंधेरा है चार सू बाकी

और जब वासना के सब चिराग बुझ जाएंगे तो निश्चित गहन अंधकार में पड़ोगे। उसी गहन अंधकार में से तलाश पैदा होती है, आदमी टटोलना शुरू करता है।

इसलिए डरो मत। कच्चे मत प्रार्थना में उतरना, अन्यथा तुम्हारी प्रार्थना भी कच्ची रह जाएगी। प्रार्थना का गुणधर्म तुम्हारे अनुभव पर निर्भर होता है। जिसने संसार को ठीक से देख लिया, और कांटों में चुभ गया है, और ज़ार-ज़ार हो गया है, और घाव-घाव हो गया है, और जिसने सब तरफ से अनुभव कर लिया और अपने अनुभव से जान लिया कि संसार असार है—शास्त्रों में लिखा है, इसलिए नहीं; कोई ज्ञानी ने कहा है, इसलिए नहीं; नानक-कबीर ने दोहराया है, इसलिए नहीं; अपने अनुभव से गवाह हो गया कि हां, संसार असार है—बस, इसी क्षण में क्रांति घटती है, संन्यास का जन्म होता है।

कहीं पे धूप की चादर बिछाके बैठ गए
कहीं पे शाम सिरहाने लगाके बैठ गए
खड़े हुए थे अलावों की आंच लेने को
सब अपनी-अपनी हथेली जलाके बैठ गए
दुकानदार तो मेले में लुट गए यारो
तमाशबीन दुकानें लगाके बैठ गए
ये सोच कर कि दरख्तों में छांव होती है
यहां बबूल के साए में आके बैठ गए

इस संसार को तुम बबूल का वृक्ष पाओगे। देर-अबेर यह अनुभव आएगा ही।

ये सोच कर कि दरख्तों में छांव होती है
यहां बबूल के साए में आके बैठ गए

लेकिन तुम्हारे अनुभव से ही यह बात उठनी चाहिए। उधार अनुभव काम नहीं आएगा। उधार ज्ञान कूड़ा-कर्कट है, उसे जितनी जल्दी फेंक दो उतना बेहतर! अपना थोड़ा सा ज्ञान पर्याप्त है—एक कण भी अपने ज्ञान का पर्याप्त है—रोशनी के लिए! और शास्त्रों का बोझ जरा भी काम नहीं आता। शास्त्रों से बचो! शास्त्र को हटाओ। जीवन को जीओ।

यह जीवन सपना है, यह टूटेगा। इसके टूटने में ही हित है। इसके टूटने में सौभाग्य है, वरदान है। क्योंकि यह सपना टूटे, तो परमात्मा से मिलन हो। यह विराग जगे संसार से, तो परमात्मा से राग जगे।

दो तरह के लोग हैं। जिनका संसार से राग है, उनका परमात्मा से विराग होता है; क्योंकि राग और विराग एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जिन्होंने संसार की तरफ मुंह कर लिया, परमात्मा की तरफ पीठ हो गई। संसार के सम्मुख हो गए, परमात्मा से विमुख हो गए। संसार के प्रति राग, परमात्मा के प्रति विराग। जिस दिन संसार के प्रति विराग होगा, उस दिन तुम एकदम रूपांतरित हो जाओगे। उस दिन तुम पाओगे, परमात्मा के प्रति राग का जन्म हो गया। उस राग का नाम ही भक्ति है। अथातो भक्ति जिज्ञासा!
-ओशो
अथातो भक्ति जिज्ञासा, भाग-2
प्रवचन नं. 22 से संकलित
(पूरा प्रवचन एम.पी.थ्री. पर भी उपलब्ध है)