धर्म और अधर्म


जहा तुम शक्ति की खोज करते हो, जान लेना कि वह धर्म की दिशा नहीं है, अधर्म की दिशा है। तुम्हारे चमत्कारी, तुम्हारे रिद्धि-सिद्धि वाले लोग, सब तुम्हारे ही बाजार के हिस्से हैं। उनसे धर्म का कोई लेना-देना नहीं। वे तुम्हें प्रभावित करते हैं, क्योंकि जो तुम्हारी आकांक्षा है, लगता है उन्हें उपलब्ध हो गया। जो तुम चाहते थे कि हाथ से ताबीज निकल जाएं, घड़ियां निकल जाएं, उनके हाथ से निकल रही हैं। तुम चमत्कृत होते हो, कि धन्य है! उनके पीछे चल पड़ते हो कि जो इनको मिल गया है, किसी न किसी दिन इनकी कृपा से हमको भी मिल जाएगा।
लेकिन घड़ियां निकाल भी लोगे तो क्या निकाला? जहां परमात्मा निकल सकता था वहा स्विस घड़ियां निकाल रहे हो। जहा शाश्वत का आनंद निकल सकता था वहा राख निकाल रहे हो। चाहे विभूति कहो उसको, क्या फर्क पड़ता है। जहा परमात्मा की विभूति उपलब्ध हो सकती थी, वहा राख नाम की विभूति निकाल रहे हो। मदारीगिरी है। अहंकार की मदारीगिरी है। लेकिन अहंकार की वही आकांक्षा है। शक्ति की मैं बात नहीं करता, क्योंकि तुम तत्क्षण उत्सुक हो जाओगे उसमें कि कैसे शक्ति मिले, बताएं। उसमें अहंकार तो मिटता नहीं अहंकार और भरता हुआ मालूम पड़ता है। तो मैं तुम्हें मिटाता नहीं फिर, मैं तुम्हें सजाने लगता हूं।
यही तो अड़चन है मेरे साथ। मैं तुम्हें सजाने को उत्सुक नहीं हूं तुम्हें मिटाने को उत्सुक हूं। क्योंकि तुम जब तक न मरो, तब तक परमात्मा तुममें आविर्भूत नहीं हो सकता। तुम जगह खाली करो। तुम सिंहासन पर बैठे हो। तुम जगह से हटो, सिंहासन रिक्त हो, तो ही उसका अवतरण हो सकता है। जैसे ही तुम शांत होओगे, अहंकार सिंहासन से उतरेगा, तुम पाओगे शक्ति उतरनी शुरू हो गई। और यह शक्ति बात ही और है, जो शात चित्त में उतरती है! क्योंकि अब अहंकार रहा नहीं जो इसका दुरुपयोग कर लेगा। अब वहां कोई दुरुपयोग करने वाला न बचा।
इसलिए जानकर ही उन शब्दों का उपयोग नहीं करता हूं जिनसे तुम्हारे अहंकार को थोड़ी सी भी खुजलाहट हो सकती है। तुम तो तैयार ही बैठे हो खुजाने को। जरा सा इशारा मिल जाए कि तुम खुजा डालोगे। तुम तो खाज के पुराने शिकार हो। तुम्हें जरा से इशारे की जरूरत है कि तुम्हारी आकांक्षा के घोड़े दौड़ पड़ेंगे। तुम सब लगामें छोड़ दोगे।
ओशो
एस धम्‍मो सनंतनो, भाग -2