संभावना

 


तुम केवल एक बीज हो। तुममें एक महान नियति छिपी है; लेकिन कुछ यथार्थ नहीं हो रहा है। संभावना व्यर्थ हो रही है, बीज बीज ही बना रहता है। तब तुम्हें क्रोध होता है। आधुनिक पीढ़ी पुरानी पीढ़ियों से बहुत ज्यादा क्रोधी है; क्योंकि संभावना का बोध ज्यादा है और उपलब्धि बहुत थोड़ी है। नई पीढ़ी को पुरानी पीढी से ज्यादा बोध है कि क्या संभव है, यह पीढ़ी बखूबी जानती है कि बहुत कुछ संभव है। लेकिन कुछ हो नहीं रहा है; संभावना यथार्थ नहीं बन रही है। इसलिए बहुत निराशा है। और जब तुम सृजन नहीं कर सकते हो तो कम से कम विध्वंस तो कर ही सकते हो। विध्वंसक होने में तुम्हें अपनी शक्ति का अहसास होता है। क्रोध, हिंसा, ये सब विध्वंसक शक्तियां हैं। ये हैं, क्योंकि सृजनात्मकता नहीं है। इन शक्तियों का विरोध मत करो, बल्कि उन्हें मुक्त होने में सहायता दो। उनका दमन नहीं करो, उन्हें विसर्जित होने दो। और तब तुम जिसे इनका विपरीत समझते थे वह उपस्थित हो जाता है। जब ये विध्वंसक शक्तियां विसर्जित हो जाती हैं तो तुम्हें अचानक बोध होता है कि शांति है, प्रेम है, करुणा है। इन गुणों का अभ्यास नहीं करना है। वे तो चट्टानों में छिपे झरने की भांति हैं, तुम चट्टानों को हटा दो और झरना बहने लगता है। झरना चट्टान के विरोध में नहीं है; झरना चट्टान का विपरीत नहीं है। बस चट्टानों के हटते ही एक मार्ग खुल जाता है और झरना प्रवाहित होने लगता है। प्रेम तुम्‍हारे भीतर झरने की भांति है और क्रोध तुम्‍हारे भीतर चट्टान की भांति है। चट्टान को हटाना भर है। लेकिन तुम तो उसे भीतर की तरफ ही ढकेलते जाते हो, उसे गहरे दबाते जाते हो। और इस भांति तुम झरने को और भी अवरुद्ध कर देते हो। इस चट्टान को हटाओ। और इस चट्टान से किसी को चोट पहुंचाने की जरूरत नहीं है। तुम किसी को चोट पहुंचाना चाहते हो, क्योंकि तुम्हें नहीं मालूम है कि किसी को चोट पहुंचाए बिना इसे कैसे फेंका जाए। मैं यही सिखाता हूं : किसी को चोट पहुंचाए बिना इसे कैसे फेंका जाए। किसी को भी चोट पहुंचाने की जरूरत नहीं है। और अगर तुम किसी को चोट पहुंचाए बिना इस चट्टान को फेंक सको तो सबको इससे लाभ होगा। 

 तंत्र सूत्र 

 ओशो