विस्मय

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जगत में बड़ी से बड़ी दुर्घटना है और वह है कि विस्मय का नष्ट हो जाना। जिस दिन तुम्हारा विस्मय नष्ट होता है, उसी दिन तुम्हारे छुटकारे का उपाय नष्ट हो गया। जिस दिन तुम्हारा विस्मय नष्ट हुआ, उसी दिन तुम्हारा बाल हृदय मर गया, जड़ हो गया, तुम बूढ़े हो गये। क्या अब भी तुम चौकते हो? क्या जीवन तुम्हें प्रश्‍न बनता है? क्या चारों तरफ से पक्षियों की आवाजें, झरनों का शोरगुल, हवाओं का वृक्षों से गुजरना, तुम्हारे लिए किसी पुलक से भर जाता है? तुम आह्लादित हो जाते हो? तुम जीवन को चारों तरफ देखकर अवाक होते हो? नहीं; क्योंकि तुम्हें सब यह पता है कि यह पक्षियों की आवाज है, यह शोरगुल है हवाओं का वृक्षों में तुम्हारे पास हर चीज के उत्तर है। उत्तरों ने तुम्हें मार डाला है। तुम ज्ञान के पहले ज्ञानी हो गये हो। शिव ने कहा विस्मय योग भूमिका:। जो व्यक्ति योग में प्रवेश करना चाहे, विस्मय उसके लिए द्वार है। अपने बचपन को वापस लौटाओ। फिर से पूछो, फिर से कुतूहल करो, फिर से जिज्ञासा जगाओ तो तुम्हारे भीतर जहां जहां जीवन के स्रोत सूख गये हैं, फिर हरे हो जायेंगे; जहां जहां पत्थर अड़ गये है, वहां वहां वह झरना फिर प्रगट हो जायेगा। तुम फिर से आंख खोलो और चारों तरफ देखो। सब उत्तर झूठे हैं। क्योंकि सब तुम्हारे उत्तर उधार हैं। तुमने खुद कुछ भी नहीं जाना है। लेकिन, तुम उधार ज्ञान से ऐसे भर गये हो कि तुम्हें प्रतीति होती है कि मैंने जान लिया। विस्मय को जगाओ। तुम्हारे आसन, प्राणायाम से कुछ भी न होगा, जब तक विस्मय न जग जाए। क्योंकि आसन, प्राणायाम सब शरीर के हैं। ठीक है, शरीर शुद्धि होगी, शरीर स्वस्थ होगा; लेकिन शरीर की शुद्धि और शरीर का स्वास्थ्य तुम्हें कोई परमात्मा से न मिला देगा। विस्मय मन की शुद्धि है। विस्मय का अर्थ है मन सभी उत्तरों से मुक्त हो गया। विस्मय का अर्थ है तुमने हटा दिया उत्तरों का कचरा; तुम्हारा प्रश्‍न फिर नया और ताजा हो गया और तुमने अपने अज्ञान को समझा। विस्मय का अर्थ है: मुझे पता नहीं; पांडित्य का अर्थ है: मुझे पता है। जितना तुम्हें पता है, उतने ही तुम गलत हो। जब तुम सरल भाव से कहते हो मुझे कुछ भी पता नहीं है, सारा जगत अज्ञान है। जो भी मुझे पता है वह भी कामचलाऊ है; मैंने अभी कुछ भी नहीं जाना है ऐसी प्रतीति जैसे ही तुम्हारे हृदय में जितनी गहरी बैठ जायेगी, तुमने योग का पहला कदम उठाया। फिर दूसरे कदम आसान हैं। लेकिन अगर पहला कदम ही चूक जाये, तो फिर तुम कितनी ही यात्रा करो, उससे कुछ हल नहीं होता। क्योंकि, जिसका पहला कदम गलत पड़ा वह मंजिल पर नहीं पहुंच सकेगा। पहला कदम जिसका सही है, उसकी आधी यात्रा पूरी हो गयी। और, विस्मय पहला कदम है। 

 शिव सूत्र 

 ओशो

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