विक्षिप्तता
कोई पूछ रहा था सिग्मंड फ्रायड से कि विक्षिप्तता की क्या परिभाषा है और विक्षिप्तता तक लोग कैसे पहुंच जाते हैं? सिग्मंड फ्रायड ने बड़ा अदभुत उत्तर दिया। उसने कहा, विक्षिप्तता और सफलता, इनकी एक ही परिभाषा है। और जो ढंग सफलता तक पहुंचने का है, वही ढंग विक्षिप्तता तक पहुंचने का है। क्योंकि जब तुम सफल होना चाहते हो, तो तुम तन जाते हो। जब तुम सफल होना चाहते हो, तो तुम लड़ते हो। जब तुम सफल होना चाहते हो, तो तुम्हारे रात-दिन चिंता से भर जाते हैं। जब तुम सफल होना चाहते हो, तो प्रतिपल तुम भयभीत होते हो कि पता नहीं, जीत पाओ, न जीत पाओ। तुम अकेले ही नहीं हो सफलता के लिए, करोड़ों प्रतिद्वंद्वी हैं। तब तुम्हारी रात-दिन चिंता, पीड़ा, तनाव, तुम कंपते ही रहते हो--पता नहीं क्या होगा, क्या नहीं होगा! और यही तो पागल होने का भी रास्ता है।
तो जिनको तुम सफल कहते हो, अगर तुम उन्हें बहुत गौर से देखो, तुम उन्हें उसी तनाव की और बेचैनी की अवस्था में पाओगे, जिनमें तुम पागलों को पाते हो।
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