प्रार्थनापूर्ण
एक आदमी सुबह प्रार्थना कर रहा है, यह और बात है। एक आदमी उठता है, बैठता है, चलता है और प्रार्थनापूर्ण है। वह जूता भी पहनता है तो प्रार्थनापूर्ण है। वह जूते को भी उठा कर रखता है तो ऐसे ही रखता है जैसे भगवान की मूर्ति को रखता हो। वह आदमी प्रार्थनापूर्ण है। वह रास्ते के किनारे एक फूल के पास खड़ा होता है तो भी वैसे ही खड़ा होता है जैसे स्वयं परमात्मा उसके सामने खड़ा हो तो खड़ा होगा। यह आदमी प्रार्थनापूर्ण है, यह कभी प्रार्थना कर नहीं रहा है। इसने प्रार्थना कभी की नहीं। प्रेयर को नहीं कहता हूं मैं कभी कि वह चेतना है। प्रेयरफुलनेस, प्रार्थनापूर्ण हृदय। यह बड़ी और बात है। प्रार्थनापूर्ण हृदय का मतलब फिर ध्यान हो जाता है, फिर कोई फर्क नहीं रह जाता। प्रार्थना तो करते ही वे हैं, जो प्रार्थनापूर्ण नहीं हैं। प्रार्थनापूर्ण प्रार्थना करेगा कैसे? वह तो प्रार्थना को जीता है, वह तो प्रार्थना होता है। वह कुछ और करता ही नहीं, और कुछ कर ही नहीं सकता। प्रार्थना तो वही करेगा जो और कुछ भी करता रहता है। दुकान भी करता है, घृणा भी करता है, क्रोध भी करता है, बाजार भी करता है, कुछ और भी करता है, उसी में प्रार्थना भी उसकी बड़े कामों की लिस्ट में एक चीज है, एक आइटम है। उसको भी करता है। लेकिन प्रार्थनापूर्ण तो वह है कि दुकान भी करता है तो प्रार्थना करता है।प्रेयरफुलनेस इ़ज़ ए स्टेट ऑफ माइंड। प्रेयरफुलनेस। प्रार्थना नहीं, प्रार्थनामयता। प्रार्थना नहीं, प्रार्थनापूर्ण होना।
प्रार्थना सेल्फ कांग्रेचुलेशन हैं। स्वयं को दिया गया धन्यवाद। स्वयं के प्रति प्रकट हो गई अनुगृहीत भावना। यह अनुग्रह-भाव है, यह ग्रेटीट्यूड है, प्रेयर नहीं। यह अनुग्रह-बोध है, यह अहोभाव है, क्योंकि प्रार्थना में पैर उतने मुक्त नहीं हो सकते जितने अहोभाव में होते हैं।
प्रार्थना में संकोच और डर तो बना ही रहता है। प्रार्थना में भय और आकांक्षा तो बनी ही रहती है। प्रार्थना सुनी जाएगी, नहीं सुनी जाएगी, इसका संशय तो बना ही रहता है। कोई प्रार्थना सुनने वाला है या नहीं, इसका संदेह तो खड़ा ही रहता है।
अनुग्रह में कोई सवाल नहीं रह जाता। कोई सुनता है या नहीं सुनता है, यह सवाल ही नहीं है। कोई गुनता है, नहीं गुनता है, यह सवाल ही नहीं है। कोई मानेगा, नहीं मानेगा, यह सवाल ही नहीं है। यह किसी के लिए एड्रेस्ड नहीं है। ध्यान जो है, अनएड्रेस्ड है। इस पर किसी का कोई पता ही नहीं है। सीधा अनुग्रह का भाव है, जो समस्त के प्रति निवेदित है। आकाश सुने तो सुने, फूल सुनें तो सुनें, बादल सुनें तो सुनें, हवाएं ले जाएं तो ले जाएं, न ले जाएं तो न ले जाएं। इसके पीछे कोई आकांक्षा नहीं है। देअर इ़ज नो एंड टु इट। यह अपने आप में पूरी है बात। बांसुरी बज गई है, बात खत्म हो गई है। कृष्ण ने अपने हृदय को निवेदन कर दिया, अनएड्रेस्ड। यह किसी के प्रति नहीं है निवेदन। यह निपट निवेदन है।
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