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अभी तक हम सोच ही नहीं सकते कि धार्मिक आदमी के ओंठों पर बांसुरी कैसे है! अभी तक हम सोच नहीं सकते कि धार्मिक आदमी और मोर का पंख लगा कर नाच कैसे रहा है! धार्मिक आदमी प्रेम कैसे कर सकता है, गीत कैसे गा सकता है! धार्मिक आदमी का हमारे मन में खयाल ही यह है कि जो जीवन को छोड़ रहा है, त्याग रहा है। उसके ओंठ से गीत नहीं उठ सकते, उसके ओंठ से दुख की आह उठ सकती है। उसके ओंठों पर बांसुरी नहीं हो सकती। यह असंभव है। इसलिए कृष्ण को समझना अतीत को बहुत ही असंभव हुआ। कृष्ण को समझा नहीं जा सका। इसलिए कृष्ण बहुत ही बेमानी, अतीत के संदर्भ में बहुत एब्सर्ड, असंगत थे। भविष्य के संदर्भ में कृष्ण रोज संगत होते चले जाएंगे। और ऐसा धर्म पृथ्वी पर अब शीघ्र ही पैदा हो जाएगा जो नाच सकता है, गा सकता है, खुश हो सकता है। अतीत का समस्त धर्म रोता हुआ, उदास, हारा हुआ, थका हुआ, पलायनवादी, एस्केपिस्ट है। भविष्य का धर्म जीवन को, जीवन के रस को स्वीकार करने वाला, आनंद से, अनुग्रह से नाचने वाला, हंसने वाला धर्म होने वाला है।

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