नथिंगनेस, नॉन-बीइंग

Osho Hindi speech audio mp3 Download,Osho Audio mp3 free Download, Osho discourses in Hindi Download,Osho world AudioOsho Quotes in Hindi, Osho Quotesनथिंगनेस, नॉन-बीइंग। मैं नहीं हूं, इस सत्य को जान लेना उपासक हो जाना है। मैं हूं, इस तथ्य को जोर से पकड़े रहना परमात्मा से दूर होते जाना है। मैं हूं, यह घोषणा ही हमारी दूरी है।


रूमी ने एक गीत लिखा है। एक प्रेमी अपनी प्रेयसी के द्वार को खटखटाता है। सूफियों का गीत है, जो कि उपासना को जानते हैं। शायद पृथ्वी पर उपासना को जानने वाले थोड़े ही लोग हैं, वे सूफी हैं। कृष्ण को अगर कोई ठीक से समझ सकता है तो वह सूफी ही समझ सकते हैं। ऐसे वे मुसलमान फकीर हैं, लेकिन इससे क्या बनता-बिगड़ता है! सूफी गीत है जलालुद्दीन रूमी का कि प्रेमी ने द्वार खटखटाया है प्रेयसी का। भीतर से आवाज आई, कौन हो? तो प्रेमी ने कहा, मैं हूं, पहचानी नहीं? फिर भीतर से कोई आवाज नहीं आती। फिर प्रेमी द्वार खटखटाए चला जाता है और कहता है, मेरी आवाज नहीं पहचानती, मैं हूं! तब भीतर से बड़ी मुश्किल से इतनी भर आवाज आती है कि जब तक तुम हो, तब तक प्रेम के द्वार नहीं खुल स
कते। कब खुले हैं मैं के लिए प्रेम के द्वार! तो जाओ, उस दिन आना जिस दिन मैं न रह जाओ।
वह प्रेमी वापस लौट जाता है। वर्ष आते हैं, जाते हैं। वर्षा और धूप और चांद और सूरज, वर्षों के बाद वह वापस लौटता है। वह द्वार पर दस्तक देता है। भीतर से फिर वही सवाल कि कौन है? लेकिन अब वह प्रेमी कहता है, अब तो तू ही है। तो रूमी की कविता यहां पूरी हो जाती है। वह कहता है कि द्वार खुल जाते हैं।


लेकिन मैं मानता हूं कि रूमी उपासना को पूरा नहीं समझ पाया। कृष्ण तक नहीं पहुंच पाई रूमी की समझ। गया थोड़ी दूर, रुक गया। अगर मैं इस कविता को लिखूं तो मैं कहूंगा कि फिर वह प्रेयसी भीतर से कहती है कि जब तक तू भी है, तब तक मैं होगा ही। छिपा होगा कहीं। क्योंकि तू का बोध मैं के बिना नहीं होता। चाहे कोई मैं कहता हो या न कहता हो, जब तक तू है, तब तक मैं मौजूद होगा ही। छिपा होगा, अप्रकट होगा, अंधेरे में दब गया होगा, मन के किसी कोने-कांतर में बैठ गया होगा, लेकिन होगा ही। क्योंकि कौन कहेगा तू? तू को कहने के लिए मैं होना ही चाहिए। यह सिर्फ तराजू बदल लिया, पहलू बदल लिए। बात कुछ हुई नहीं, बात कुछ बनी नहीं। तो मैं अगर इस कविता को लिखूं तो कहूंगा कि फिर वह कह देती है कि जब तक तू है, तब तक मैं कैसे मिट सकता है? अभी तू मैं को खोकर आया, अब तू को भी खोकर आ।
लेकिन जब मैं भी खो जाएगा और तू भी खो जाएगा, तो क्या प्रेमी आएगा? तब मेरी कविता बड़ी मुश्किल में पड़ जाएगी, क्योंकि फिर वह आएगा कैसे? आएगा किसके पास? आएगा कहां से? आएगा कहां? नहीं, फिर वह आएगा ही नहीं। फिर आने की कोई बात न रही, फिर जाने की कोई बात न रही, क्योंकि फासला, वह इनर डिस्टेंस ही टूट गया जिसमें आया-जाया जा सकता है। वह जो भीतर का फासला था वह टूट गया, वह तो मैं और तू का फासला था। इसलिए मेरी कविता आखिर में जाकर बड़ी मुश्किल में पड़ जाएगी। हो सकता है रूमी ने इसीलिए कविता वहीं खत्म की। क्योंकि आगे फिर कविता को खत्म कैसे करेंगे? वहां जाकर कविता एकदम टकरा जाएगी जिंदगी की चट्टान से और टूट जाएगी। क्योंकि फिर आएगा कौन? आएगा किसके पास? आएगा क्यों? जब तक आता है, तब तक फासला है। और जब मैं और तू न रहे तो कोई फासला नहीं, जो जहां है उसे वहीं मिल जाता है।
उपासना के लिए कहीं पहुंचना नहीं होता। जहां हम हैं, वहीं घटित हो जाती है। किसी के पास नहीं पहुंचना होता, बस अपने से मिटना होता है और पास पहुंचना हो जाता है

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