निर्विकल्प

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मैं पूरी जिंदगी को ही स्वीकार करता हूं, वही मेरी विनम्रता है।स्थिर हो जाने का कुल मतलब ही इतना है, स्थिर हो जाने का मतलब जड़ हो जाना नहीं है, स्थिर हो जाने का मतलब कुल इतना है कि प्रज्ञा उपलब्ध हो गई है, और अब जो प्रज्ञा करवाती है वह करता है, अब अपनी तरफ से कुछ भी नहीं करता है। अब न दोष उसके हैं, न गुण उसके हैं। अब न आदर उसका है, न अनादर उसका है। अब न तो वह यह कहता है कि जो मैं कर रहा हूं वह ठीक कर रहा हूं, न वह यह कहता है कि जो मैं कर रहा हूं वह गैर-ठीक कर रहा हूं। अब न तो वह पछताता, अब न वह प्रायश्र्चित्त करता--अब वह पीछे लौट कर ही नहीं देखता, अब जो होता है, होता है; और वह उसको होने देता है। अब उसके पास कोई भी इस होने देने के ऊपर खड़ा हुआ नहीं है जो रोके और निर्णय करे कि यह करो और यह मत करो। वह निर्विकल्प हुआ, वह चॉइसलेस हुआ।

इसलिए अगर कभी आप पाएं कि मैं बहुत गर्म मालूम पड़ता हूं, तो पा सकते हैं। कोई उपाय नहीं है। गर्मी आती है तो मैं गर्म होता हूं, ठंडी आती है तो मैं ठंडा हो जाता हूं। और मैंने अपनी तरफ से होना छोड़ दिया मैंने जिद्द छोड़ दी कि मैं यह होऊं और यह न होऊं। इसको ही मैं कहता हूं कि प्रज्ञा की थिरता है।

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