आत्मवान

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अगर किसी व्यक्ति को इंस्ट्रूमेंट बनाया जाए, तो उसका व्यक्तित्व नष्ट होता है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति इंस्ट्रूमेंट बन जाए तो उसका व्यक्तित्व खिलता है, नष्ट नहीं होता। अगर कोई दबाव डाल कर किसी आदमी को साधन बना दे, तो उस आदमी की आत्मा मर जाती है। लेकिन अगर कोई अपने ही हाथ से समर्पण कर दे और सब छोड़ दे और साधन बन जाए, तो उसकी आत्मा पूरी तरह खिल जाती है। उसका व्यक्तित्व नष्ट नहीं होता, फुलफिल्ड हो जाता है। जो फर्क है असल में वह यह नहीं है। फर्क इतना ही है कि अगर मेरे ऊपर जबरदस्ती आप हथकड़ियां डाल दें तो मैं गुलाम हो जाता हूं। और अगर मैं हथकड़ियां उठा कर आपको दे दूं और कहूं कि मेरे हाथ में डाल दें, तो मैं गुलामी का भी नियंता हो जाता हूं। मैं अपनी गुलामी का भी निर्धारक हो जाता हूं। जिस इंस्ट्रूमेंटालिटी में, जिस यांत्रिकता में हम यंत्र बनाए जाते हैं, जहां हमारी मजबूरी है, जहां हम गुलाम की तरह हैं, वहां तो व्यक्तित्व मरता है। लेकिन कृष्ण अर्जुन से यह नहीं कह रहे हैं कि तू यंत्रवत बन जा। कृष्ण अर्जुन से यह कह रहे हैं कि तू समझ। इस जगत की धारा में तू व्यर्थ ही लड़ मत। इस धारा को समझ, इसमें आड़ा मत पड़, इसमें बह। और तब तू पूरा खिल जाएगा। अगर कोई आदमी अपने ही हाथ से समर्पित हो गया है इस जगत के प्रति, इस सत्य के प्रति, इस विश्र्वयात्रा के प्रति, तो वह यंत्रवत नहीं है, वही आत्मवान है। क्योंकि समर्पण से बड़ी और कोई घोषणा अपनी मालकियत की इस जगत में नहीं है।

डायोजनीज गुजरता है एक जंगल से। नंगा फकीर, अलमस्त आदमी है। कुछ लोग जा रहे हैं गुलामों को बेचने बाजार। उन्होंने देखा इस डायोजनीज को। सोचा कि यह आदमी पकड़ में आ जाए तो दाम अच्छे मिल सकते हैं। और ऐसा गुलाम कभी बाजार में बिका भी नहीं है। बड़ा शानदार है! ठीक महावीर जैसा शरीर अगर किसी आदमी के पास था दूसरे फकीरों में, तो वह डायोजनीज के पास था। मैं तो यह निरंतर कहता ही हूं कि महावीर नग्न इसलिए खड़े हो सके कि वे इतने सुंदर थे कि ढांकने योग्य कुछ था नहीं। बहुत सुंदर व्यक्तित्व था। वैसा डायोजनीज का भी व्यक्तित्व था। उन लोगों ने लेकिन सोचा कि हम हैं तो आठ, लेकिन इसको पकड़ेंगे कैसे! यह हम आठ की भी मिट्टी कर दे सकता है। यह अकेला काफी है। मगर फिर भी उन्होंने सोचा कि हिम्मत बांधो। और ध्यान रखें, जो दूसरे को दबाने जाता है वह हमेशा भीतर अपने को कमजोर समझता ही है। वह सदा भयभीत होता है। ध्यान रखें, जो दूसरे को भयभीत करता है, वह भीतर भयभीत होता ही है। सिर्फ वे ही दूसरे को भयभीत करने से बच सकते हैं, जो अभय हैं। अन्यथा कोई उपाय नहीं। असल में वह दूसरे को भयभीत ही इसलिए करता है कि कहीं वह हमें भयभीत न कर दे। वे आठों डर गए हैं। बड़ी गोष्ठी करके, बड़ा पक्का निर्णय करके, चर्चा करके वे आठों एकदम से हमला करते हैं डायोजनीज पर। लेकिन बड़ी मुश्किल में पड़ जाते हैं। अगर डायोजनीज उनके हमले का जवाब देता तो वे मुश्किल में न पड़ते। क्योंकि उनकी योजना में इसकी चर्चा हो गई थी। डायोजनीज उनके बीच में आंख बंद करके हाथ जोड़ कर खड़ा हो जाता है और कहता है, क्या इरादे हैं? क्या खेल खेलने का इरादा है? वे बड़ी मुश्किल में पड़ गए हैं कि अब इससे क्या कहें! उन्होंने कहा कि माफ करें, हम आपको गुलाम बनाना चाहते हैं। तो डायोजनीज ने कहा, इतने जोर से कूदने-फांदने की क्या जरूरत है? नासमझो, निवेदन कर देते, हम राजी हो जाते। इसमें इतना उछल-कूद, इतना छिपना-छिपाना, यह सब क्या कर रहे हो? बंद करो यह सब! कहां हैं तुम्हारी जंजीरें? वे तो बड़ी मुश्किल में पड़ गए हैं। क्योंकि ऐसा आदमी कभी नहीं देखा था कि जो कहे--कहां हैं तुम्हारी जंजीरें? और इतने डांट कर वह पूछता है जैसे मालिक वह है और गुलाम ये हैं। जंजीरें उन्होंने निकालीं, डरते हुए दे दीं। उसने हाथ बढ़ा दिए और कहा कि बंद करो! पर वे कहने लगे, आप यह क्या कर रहे हैं? हम आपको गुलाम बनाने आए थे, आप बने जा रहे हैं! डायोजनीज ने कहा कि हम यह राज समझ गए कि इस जगत में स्वतंत्र होने का एक ही उपाय है और वह यह कि गुलामी के लिए भी दिल से राजी हो जाएं। अब हमें कोई गुलाम बना नहीं सकता है। अब उपाय ही न रहा तुम्हारे पास। अब तुम कुछ न कर सकोगे। फिर वे डरे हुए उसको बांध कर चलने लगे, तो डायोजनीज ने कहा कि नाहक तुम्हें यह जंजीरों का बोझ ढोना पड़ रहा है। क्योंकि उन जंजीरों को उन्हें पकड़ कर रखना पड़ रहा है। डायोजनीज ने कहा, उतार कर फेंक दो। मैं तो तुम्हारे साथ चल ही रहा हूं। एक ही बात का खयाल रखो कि तुम समय के पहले मत भाग जाना, मैं भागने वाला नहीं हूं। तो उन्होंने जंजीरें उतार कर रख दीं, क्योंकि आदमी तो ऐसा ही मालूम हो रहा था। जिसने अपने हाथ में जंजीरें पहनवा दीं, उसको अब और जंजीर बांध कर ले जाने का क्या मतलब था? फिर जहां से भी वे निकलते हैं तो डायोजनीज शान से चल रहा है और जिन्होंने गुलाम बनाया है, वे बड़े डरे हुए चल रहे हैं कि पता नहीं, कोई उपद्रव न कर दे यह किसी जगह पर, कोई सड़क पर, किसी गांव में। और जगह-जगह जो भी देखता है वह डायोजनीज को देखता है और डायोजनीज कहता है, क्या देख रहे हो? ये मेरे गुलाम हैं। ये मुझे छोड़ कर नहीं भाग सकते। वह जगह-जगह यह कहता फिरता है कि ये मुझे छोड़ कर नहीं भाग सकते, ये मुझसे बंधे हैं। और वे बेचारे बड़े हतप्रभ हुए जा रहे हैं। किसी तरह वह बाजार आ जाए! वह बाजार आ गया। उन्होंने जाकर किसी से गुफ्तगू की, जो बेचने वाला था उससे बातचीत की। कहा कि जल्दी नीलाम पर इस आदमी को चढ़ा दो, क्योंकि इसकी वजह से हम बड़ी मुसीबत में पड़े हुए हैं। और भीड़ लग जाती है और लोगों से यह कहता है कि ये मेरे गुलाम हैं, अच्छा, ये मुझे छोड़ कर नहीं भाग सकते। अगर हों मालिक, भाग जाएं। अब इसको छोड़ कर कहां भागें हम, यह तो कीमती आदमी है और पैसा अच्छा मिल जाएगा। तो उसे तख्ती पर खड़ा किया जाता है और नीलाम करने वाला जोर से चिल्लाता है कि एक बहुत शानदार गुलाम बिकने आया है, कोई खरीददार है? तो डायोजनीज जोर से चिल्ला कर कहता है कि चुप, नासमझ! अगर तुझे आवाज लगाना नहीं आता है तो आवाज हम लगा देंगे। वह घबड़ा जाता है, क्योंकि किसी गुलाम ने कभी उस नीलाम करने वाले को इस तरह नहीं डांटा था। और डायोजनीज चिल्ला कर कहता है कि आज एक मालिक इस बाजार में बिकने आया है, किसी को खरीदना हो तो खरीद ले! 


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