ट्रांसरेशनल

Osho Hindi speech audio mp3 Download,Osho Audio mp3 free Download, Osho discourses in Hindi Download,Osho world AudioOsho Quotes in Hindi, Osho Quotes


कृष्ण पर कोई टीका पूरी नहीं है। हो नहीं सकती। जब तक कि कृष्ण जैसा व्यक्ति ही टीका न करे। कृष्ण पर कोई टीका पूरी नहीं है। सब पहलू हैं। और कृष्ण के अनंत पहलू हैं। उनमें से जिसको जो प्रीतिकर है, चुन लेता है। शंकर उसी टीका में संन्यास सिद्ध कर देते हैं, अकर्म सिद्ध कर देते हैं। उसी गीता में तिलक कर्म सिद्ध कर देते हैं, कर्मयोग सिद्ध कर देते हैं। शंकर से ठीक उलटा पहलू तिलक चुन लेते हैं। शंकर के पहलू को चुने हुए हजार साल हो गए थे। और हजार साल में शंकर के पलायनवादी पहलू ने हिंदुस्तान की जड़ों को बहुत तरह से कमजोर किया। भगोड़ापन कमजोर करेगा। हिंदुस्तान में जो भी सक्रिय होने की क्षमता थी, उस सबको क्षीण किया। हजार साल के अनुभव ने पेंडुलम को घुमा दिया। जरूरी हो गया कि गीता की कोई व्याख्या हो जो कर्म को प्रश्रय दे और कहे जोर से कि गीता कर्म के लिए ही कहती है। ठीक दूसरे एक्सट्रीम पर तिलक ने वक्तव्य दिया। एक पहलू चुना था शंकर ने, अकर्म का, कर्म छोड़ने वाले अकर्म का; तिलक ने दूसरा पहलू चुना--कर्म में डूबने वाले का। तो कर्म की व्याख्या तिलक ने की, वह भी उतनी ही अधूरी है। बहुत सी व्याख्याएं हैं कृष्ण पर, अंदाजन पचास नहीं, हजार, और रोज बढ़ती जाती हैं। लेकिन कोई टीका गीता के साथ न्याय नहीं कर पाती। उसका कारण है कि कोई टीकाकार ट्रांसरेशनल होने की हिम्मत नहीं कर पाता। असल में टीकाकार सदा रेशनल ही होता है। कहते तो ये सभी हैं कि हम तर्क से परे जाना चाहते हैं। वे सब कहते हैं, लेकिन तर्क से पार अगर वे जाएं, तो गीता निर्मित हो जाएगी, टीका निर्मित नहीं होगी। तब गीता बन जाएगी। तब टीका की कोई जरूरत नहीं रह जाएगी। टीका का मतलब ही यह होता है कि जो हमें समझ में नहीं पड़ता, उसे हम समझाने योग्य टिप्पणी दे रहे हैं। टीका का मतलब ही यह होता है, कमेंट्री का मतलब ही यह होता है कि जो गीता में आपको समझ में नहीं आता, वह मैं समझाता हूं। तो मैं उसकी एक व्याख्या करूंगा। और जब समझाने के लिए ही व्याख्या करूंगा, तो वह तर्क के पार नहीं जा सकती। तर्क के पार अगर कोई भी बात जाएगी तो वह स्वयं गीता बन जाएगी, वह कमेंट्री नहीं रह जाएगी।

Comments

Popular Posts