शाश्वत
एक-एक पर्त को उघाड़ना है, ताकि भीतर छिपे केंद्र को तुम खोज पाओ। हीरा छिपा है, खोया तुमने नहीं। खो सकते भी नहीं हो; क्योंकि वह हीरा तुम ही हो। दब सकते हो; हीरा भी मिट्टी में दब जाता है। हीरे पर भी पर्त जम जाती हैं। हीरा भी पत्थर जैसा दिखाई पड़ने लगता है। पर भीतर कुछ भी नष्ट नहीं होता।
तुम्हें शायद खयाल न हो कि हीरे का इतना मूल्य क्यों? हीरे के मूल्य के पीछे मनुष्य की शाश्वत की खोज है। इस जगत में हीरा सबसे थिर है। सब चीजें बदल जाती हैं; हीरा बिना बदला हुआ बना रहता है। करोड़ों-करोड़ों वर्ष में भी वह क्षीण नहीं होता। इस बदलते हुए संसार में, हीरा न बदलते हुए अस्तित्व का प्रतीक है। इसलिए हीरे का इतना मूल्य है। अन्यथा वह पत्थर है। मूल्य है उसकी शाश्वतता का, उसके ठहराव का।
हीरा होना तुम्हारा शाश्वत स्वभाव है। और सारी साधना तुम्हारी मिट्टी की जम गई पर्तों को अलग करने की है। पर्तें मिट्टी की हैं; इसलिए अलग करना बहुत कठिन न होगा। और पर्तें हीरे पर हैं और मिट्टी की हैं, शाश्वत पर हैं, परिवर्तनशील की हैं, इसलिए बहुत कठिन बात नहीं होगी। मंत्र इन पर्तों को खोदने की विधि है।
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