राम एक बगिया हैं। कृष्ण एक विराट जंगल हैं, जिसमें कोई व्यवस्था नहीं है, जिसमें क्यारियां कटी हुई और साफ-सुथरी नहीं हैं, जिसमें रास्ते बने हुए नहीं हैं, पगडंडियां तय नहीं हैं; जिसमें भयंकर जंतु भी हैं, हमलावर शेर भी है, सिंह भी है, अंधेरा भी है, चोर-डाकू भी हो सकते हैं, जीवन को खतरा भी हो सकता है। कृष्ण का व्यक्तित्व तो एक विराट जंगल की भांति है--अनियोजित, अनप्लांड; जैसा है वैसा है। राम का व्यक्तित्व एक छोटी सी बगिया की तरह है, किचन गार्डन की तरह है जो आपने अपने घर के बगल में लगा रखा है। सब साफ-सुथरा है। कोई खतरा नहीं है, कोई जंगली जानवर नहीं हैं। मैं नहीं कहता कि आप किचन गार्डन न लगाएं। इतना ही कहता हूं कि किचन गार्डन किचन गार्डन है, जंगल जंगल है। और कभी जब किचन गार्डन से ऊब जाएंगे तो पाएंगे कि जंगल में ही असली राज है। वह हमारा लगाया हुआ नहीं है।
तो आपकी परंपरा ने राम और कृष्ण में तो तुलना कर ली है, लेकिन मीरा और हनुमान में नहीं की। मीरा और हनुमान में करने का बहुत कारण भी नहीं है। लेकिन, कल बात उठी, इसलिए मैंने कहा। मैंने कहा कि हनुमान, जब राम ही किचन गार्डन हैं, तो हनुमान को कहां रखिएगा? एक गमला ही रह जाएंगे। जब मैं राम को कहूंगा कि एक छोटी सी बगिया हैं बंगले के बाहर लगी हुई...बंगले के बाहर बगिया होनी चाहिए, और बंगले के बाहर जंगल नहीं लगाया जा सकता, वह भी मुझे भलीभांति ज्ञात है। लेकिन फिर भी बगिया बगिया है, जंगल जंगल है। और कभी-कभी जब बगिया से ऊब जाते हैं तो जंगल की तरफ जाना पड़ता है। और एक दिन ऊब जाना चाहिए बगिया से, वह भी जरूरी है। तो हनुमान को कहां रखिएगा? हनुमान तो फिर एक गमला रह जाते हैं। बहुत साफ-सुथरे हैं। कई बार राम से भी ज्यादा साफ-सुथरे हैं। क्योंकि और छोटी जगह घेरते हैं, इसलिए और साफ-सुथरे हो सकते हैं।
हनुमान नर्तन करते हैं कभी-कभी! नर्तन कर सकते हैं। नर्तन कर सकते हैं, बंगले के बगीचे पर जब हवा बहती है तो उसके पौधे भी नाचते हैं। और गमले में लगे पौधे पर भी जब हवा बहती है तो वह भी डोलता है। लेकिन जंगल में तांडव चलता है। उसकी बात ही और है। हम उससे ही तो घबड़ाते हैं। वह नर्तन विराट है, हमारे कंट्रोल के बाहर है। यह नर्तन हमारे भीतर है। हनुमान नर्तन करते हैं, लेकिन राम की आज्ञा मान लेंगे। मीरा नर्तन करती है और कृष्ण भी अगर रोकें तो नहीं रुकेगी। फर्क बड़े बुनियादी हैं। मीरा कृष्ण को भी डांट-डपट देगी। हनुमान न डांट-डपट सकेंगे। मीरा कृष्ण को भी कह देगी, बैठो एक तरफ, हटो रास्ते से, नाच चलने दो, बीच में मत आओ! वह हनुमान न कर सकेंगे। हनुमान एक आज्ञाकारी व्यक्ति हैं, एक डिसिप्लिडं आदमी हैं। दुनिया में डिसिप्लिन की जरूरत है, बिलकुल है। अनुशासन की जरूरत है। लेकिन, जीवन में जो भी विराट है, जो भी गहन-गंभीर है, वह सब अनुशासनमुक्त है। वह जीवन में जो भी सुंदर है, सत्य है, शिव है, वह बिना किसी अनुशासन के अचानक फूट पड़ता है।
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