निर्विषय चित्त
मगर सचाई उलटी है। सचाई यह है कि धन के अनुभव से आदमी की आसक्ति छूटती है। और विषय के अनुभव से विषय से मुक्ति होती है। क्योंकि अनुभव कर-कर के पाया जाता है: कुछ भी तो नहीं, हाथ कुछ भी तो नहीं लगता। हाथ खाली के खाली रह जाते हैं। वही झोली खाली की खाली। विषय के अनुभव से आदमी अपने आप निर्विषय होता है। सिर्फ जागरूकता से विषय का अनुभव करना है। बस जागरूकता की शर्त जुड़ जाए तो तुम निर्विषय हो जाओगे। जागरूकता का एक सूत्र समझ लो तो विचार से निर्विचार हो जाओगे, मन से अ-मन हो जाओगे।
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