अनाग्रहशील

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कृष्ण की जिंदगी एक बहाव है। हवाएं पूरब जाती हैं तो वे पूरब चले जाते हैं, हवाएं पश्र्चिम जाती हैं तो वे पश्र्चिम चले जाते हैं। कृष्ण का अपना आग्रह नहीं है कि मैं यहीं रहूंगा, ऐसा ही रहूंगा, ऐसा ही होने की मैंने कसम खा रखी है, ऐसा कुछ भी नहीं है। जिंदगी जहां ले जाती है, वे राजी हैं। और लाओत्से का एक वचन है, वह मैं कहूं आपको। लाओत्से कहता है, हवाओं की तरह हो जाओ। जब हवाएं पूरब जाएं तो पूरब, जब हवाएं पश्र्चिम जाएं तो पश्र्चिम। तुम आग्रह मत करो कि मैं यहां ही जाऊंगा।

एक छोटी सी झेन कहानी है। एक नदी पर तीव्र पूर है। जोर का बहाव है--बाढ़ है आई हुई। पागल दौड़ती है नदी। और दो घास के छोटे से तिनके उसमें बह रहे हैं। एक तिनके ने नदी की बाढ़ में अपने को आड़ा डाल रखा है और नदी से लड़ रहा है। कुछ फर्क नहीं पड़ रहा है नदी को। उसे पता भी नहीं है कि यह तिनका नदी से लड़ रहा है। लेकिन तिनका है कि मरा जा रहा है, तिनका है कि लड़े जा रहा है। लड़ रहा है, फिर भी बह तो रहा ही है; क्योंकि नदी बही जा रही है। कोई तिनके के लड़ने से नदी रुकती नहीं। दूसरे तिनके ने नदी में अपने को सीधा छोड़ दिया है, लंबाई में। और वह बड़ा आनंदित है और बड़ा नाच रहा है, क्योंकि वह यह सोच रहा है कि नदी को बहने का मैं रास्ता दे रहा हूं। नदी मेरे सहारे बही जा रही है। नदी को कोई फर्क नहीं पड़ता है। नदी को उन दोनों तिनकों का भी कोई पता नहीं है। लेकिन उन तिनकों को बहुत फर्क पड़ता है।
जिंदगी में दो ही तरह के लोग हैं। आग्रहशील--ऐसे ही होंगे, यही होंगे, यही करेंगे--ऐसे लोग उस तिनके की तरह हैं जो नदी में अपने को आड़ा डाल देते हैं। इससे नदी को कोई फर्क नहीं पड़ता, जीवन की धारा बही चली जाती है। वे आड़े ही बहते रहते हैं, लेकिन कष्ट बड़ा भोगते हैं। ऐसे भी लोग हैं जो जिंदगी में नदी की धार में अपने को सीधा लंबा छोड़ देते हैं। वे कहते हैं कि हम साथ हैं। हम तुम्हें साथ ही दे रहे हैं! नदी, बहो! हमारे साथ ही बहो! वे बड़े आनंदित होते हैं और नाच पाते हैं।
कृष्ण के ओंठों पर बांसुरी संभव हो सकी, क्योंकि वे लंबी धारा में अपने को छोड़े हुए आदमी हैं। जिंदगी की धार के साथ वे एक हैं; आड़े नहीं हैं। नहीं तो बांसुरी मुश्किल थी। महावीर के ओंठ पर बांसुरी नहीं रख सकते आप। एकदम फेंक देंगे कि यह क्या पागलपन कर रहे हो! कृष्ण के ओंठ पर बांसुरी रखी जा सकती है। यह आदमी बांसुरी बजा सकता है। उसका कुल कारण इतना है कि नदी की, जीवन की धारा से कोई ऐसा संघर्ष नहीं है; नदी जहां ले जाती है, जाने को राजी है। अगर मथुरा से नदी बह गई, तो द्वारिका में बहेगी, हर्ज क्या है? अगर मथुरा के घाट से छूट गया सब, तो द्वारिका में घाट बन जाएगा, हर्ज क्या है? अनाग्रहशील व्यक्तित्व का वह लक्षण है।

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