स्वीकार
जिंदगी में जो कुछ है, जो भी है
सहर्ष स्वीकारा है;
इसीलिए कि जो कुछ भी मेरा है
वह तुम्हें प्यारा है।
गर्वीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब,
यह विचार वैभव सब;
दृढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनव सब
मौलिक है, मौलिक है;
इसलिए कि पल-पल में
जो कुछ भी जाग्रत है, अपलक है--
संवेदन तुम्हारा है!
जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है,
जितना भी उंड़ेलता हूं भर-भर फिर आता है।
दिल में क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता है?
मुसकाता रहे चंद्र धरती पर रात भर
चेहरे पर मेरे त्यों
मुखमंडल तुम्हारा है।
तुम्हारा ही सहारा है
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
या मेरा जो होने-सा लगता है
होता-सा संभव है
सभी वह तुम्हारे ही कारण के कार्यों का घेरा है
कार्यों का वैभव है।
जिंदगी में जो कुछ भी है, जो कुछ है,
सहर्ष स्वीकारा है,
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
वह तुम्हें प्यारा है!
भक्त की यही भाव-दशा है। भक्त न कुछ छोड़ता, न कुछ तोड़ता। भक्त न भागता, न त्यागता। भक्त तो कहता है: जो कुछ है, सब तुम्हारा है। छोडूं तो क्या छोडूं! पकडूं तो क्या पकडूं! पकडूंगा तो भी दावा हो गया। छोडूंगा तो भी दावा हो गया कि मेरा था, छोड़ा। जो कुछ है, सब तुम्हारा है। और तुमने दिया है तो निश्चित ही वह तुम्हें प्यारा है; नहीं तो देते ही क्यों? जैसा तुमने बनाया है वैसा तुम्हें जरूर प्यारा है। तुम्हारी मर्जी मैं तुम्हारी मर्जी में पूरा-पूरा जीऊंगा, रत्ती भर हेर-फेर न करूंगा। बुरा हूं या भला हूं, तुम्हारा हूं। भक्त की यह दशा अपूर्व है परमात्मा के लिए ।
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