फलाकांक्षा रहित

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हम सबका चित्त ऐसा है। भविष्य तो आता है अपने से। वह आ ही रहा है, वह हमारे रोके न रुकेगा। फल आते हैं अपने से, वे हमारे रोके न रुकेंगे। हम अपने कृत्य को पूरा कर लें, इतना काफी है, उसके बाहर हमें होने की जरूरत नहीं है। कृष्ण इतना ही कहते हैं कि तुम्हारा कृत्य पूरा हो, दि एक्ट मस्ट बी टोटल। टोटल का मतलब है कि उसके बाहर करने को तुम्हें कुछ भी न बचे, तुम पूरा उसे कर लिए और बात खत्म हो गई। इसलिए वे कहते हैं कि तुम परमात्मा पर छोड़ दो फल। परमात्मा पर छोड़ने का मतलब यह नहीं है कि कोई नियंता, कहीं कंट्रोलर कोई बैठा है, उस पर तुम छोड़ दो, वह तुम्हारा हिसाब-किताब रखेगा। परमात्मा पर छोड़ने का कुल इतना ही मतलब है कि तुम कृपा करो, तुम सिर्फ करो और समष्टि से उस करने की प्रतिध्वनि आती ही है, वह आ ही जाएगी। जैसे कि मैं इन पहाड़ों में जोर से चिल्लाऊं और कोई मुझसे कहे कि तुम चिल्लाओ भर, प्रतिध्वनि की चिंता मत करो, पहाड़ प्रतिध्वनि करते ही हैं। तुम पहाड़ों पर छोड़ दो प्रतिध्वनि की बात। तुम नाहक चिंतित मत होओ। क्योंकि तुम्हारी चिंता तुम्हें ठीक से ध्वनि भी न करने देगी। और फिर हो सकता है कि प्रतिध्वनि भी न हो पाए, क्योंकि प्रतिध्वनि होने के लिए ध्वनि तो होनी चाहिए। फलाकांक्षा कर्म को ही नहीं करने देती। फलाकांक्षा में उलझे हुए लोग कर्म करने से चूक ही जाते हैं, क्योंकि कर्म का क्षण है वर्तमान और फल का क्षण है भविष्य। जिनकी आंखें भविष्य पर गड़ी हैं, वे अगर वर्तमान के बहुत नाजुक क्षण से चूक जाते हों, तो इसमें आश्र्चर्य नहीं है। क्योंकि आंखें तो ग़ड़ी हैं भविष्य पर, कल पर, फल पर, तो काम तो बेमानी हो जाता है। किसी तरह हम करते हैं। नजर लगी होती है आगे, ध्यान लगा होता है आगे। और जहां ध्यान है, वहीं हम हैं। और अगर ध्यान वर्तमान क्षण पर नहीं है, तो गैर-ध्यान में, इनअटेंटिवली जो होता है, होता है। उस होने में बहुत गहराई नहीं होती, उस होने में पूर्णता नहीं होती, उस होने में आनंद नहीं होता है।कृष्ण की फलाकांक्षारहित कर्म की जो दृष्टि है, उसका कुल मतलब इतना है कि तुम इतना भी अपना हिस्सा भविष्य के लिए मत तोड़ो कि इस काम में बाधा पड़ जाए, तुम इस काम को पूरा ही कर लो। भविष्य जब आए तब तुम भविष्य में पूरे हो लेना, कृपा करके अभी तुम पूरे हो लो। अभी तुम इसी में पूरे हो लो। भविष्य आएगा। और तुम्हारे पूरे होने से फल निकलेगा। उसकी तुम चिंता ही मत करो, उसे तुम निश्र्चिंत हो परमात्मा पर छोड़ सकते हो। हम जैसे हैं, हमने जन्म को बंधन बनाया है। और अगर हम फलाकांक्षारहित होकर जीना शुरू करें, तो जन्म हमारे लिए बंधन नहीं रह जाएगा। ऐसा व्यक्ति जीवन-मुक्ति को उपलब्ध होता है। यही जीवन है मुक्ति। यहीं है वह जीवन, अभी है वह जीवन। हमारे देखने पर निर्भर करता है।

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