क्रांति

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इस देश में रिश्वत को मिटाना मुश्किल पड़ रहा है और मुश्किल पड़ेगा, क्योंकि यह कार्य बहुत प्राचीन है और बहुत धार्मिक है। हम परमात्मा तक को रिश्वत देते रहे, तो आदमी की क्या बिसात! जब परमात्मा तक रिश्वत स्वीकार करता है, तो बेचारे छोटे-मोटे अफसर--पुलिसवाला, स्टेशन-मास्टर, डिप्टी-कलेक्टर, इनकी क्या हैसियत! तुम तो हनुमान जी को दे आते हो रिश्वत, कि मेरे लड़के को पास करवा देना, एक नारियल चढ़ाऊंगा। और हनुमान जी भी खूब हैं, एक नारियल के पीछे तुम्हारे लड़के को पास भी करवा देते हैं! गजब के हनुमान जी हैं। और तुम कभी सोचते नहीं कि तुम क्या कह रहे हो। तुम मंदिर जाओ, मस्जिद जाओ, गिरजा जाओ, गुरुद्वारा जाओ--मगर जाने का कारण एक कि कुछ पाना है। आनंद को उपलब्ध व्यक्ति भी जाएगा, लेकिन पाने नहीं, बांटने। उसके जीवन में करुणा होगी, प्रेम होगा, दया होगी। उसके जीवन में बहुत फूल खिलेंगे, लेकिन वे सारे फूल स्वांतः सुखाय! वह अगर गुनगुनाएगा भी उपनिषद तो इसलिए नहीं कि कुछ पाना है, बल्कि इसलिए कि उपनिषद के गुनगुनाने का मजा ही और! यह वाणी मधुर है, इसलिए। वह अगर धम्मपद को स्मरण करेगा तो इसलिए नहीं कि धम्मपद को स्मरण करने से भगवान बुद्ध प्रसन्न हो जाएंगे और जब प्रसन्न हो जाएंगे तो फिर कुछ काम बनेगा, कुछ काम सटेगा। नहीं, उसे प्यारे लगते हैं वचन। अब तो उसका अनुभव भी यही है। बुद्ध इसी अनुभव को इतने सुंदर ढंग से कह सके हैं कि वह स्वयं कहने में असमर्थ है। उसके पास ऐसी वाणी नहीं, उसके पास ऐसे सुंदर शब्द नहीं। इसलिए उपनिषद है, कुरान है, बाइबिल है, धम्मपद है, जिन-वचन हैं; लेकिन अब इनसे पाने की कोई आकांक्षा नहीं है। अगर अब परमात्मा भी उसको मिल जाए और कहे कि कुछ मांग लो, तो वह बड़ी मुश्किल में पड़ जाएगा। वह कहेगा: अब क्या मांगना है! जो मांगना था वह मिल चुका। अब तो तुम्हें कुछ चाहिए हो तो मुझसे ले लो।

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