तरकीबें
मैंने सुना है, एक पागलखाने में तीन आदमी बंद थे--एक ही कोठरी में; क्योंकि एक ही साथ पागल हुए थे, और तीनों पुराने साथी थे। एक-दूसरे को रंग दिया होगा। एक मनोवैज्ञानिक उनका अध्ययन करने आया था। तो उसने पागलखाने के डाक्टर को पूछा कि इनमें नंबर एक की क्या तकलीफ है? उसने कहा, यह नंबर एक, एक रस्सी में लगी हुई गांठ को खोलने का उपाय कर रहा था और खोल नहीं पाया उसी में पागल हुआ। और यह दूसरा क्या कर रहा था?यह भी वही गांठ खोल रहा था रस्सी में लगी और खोलने में सफल हो गया, और इसीलिए पागल हुआ। वह मनोवैज्ञानिक थोड़ा हैरान हुआ। उसने कहा, और ये तीसरे सज्जन? उसने कहा, ये वे सज्जन हैं, जिन्होंने गांठ लगाई थी।
कोई गांठ लगा रहा है, कोई गांठ खोल रहा है; कोई सफल हो जाता है, कोई असफल हो जाता है--इससे कोई फर्क नहीं पड़ता; सब पागल हो जाते हैं। लेकिन लोग गांठ लगाने-खोलने में उलझे क्यों हैं? अपने से बचने के लिए। स्वयं से बचने की तरकीबें हैं!
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