वर्जना
नारद परिव्राजकोपनिषद में संन्यासी की लक्षणा है, यह संन्यासी की लक्षणा नहीं है। यह लक्षणा बिलकुल गलत है। इसी गलती का तो हम परिणाम भोग रहे हैं सारी पृथ्वी पर। यह सड़ी-गली मनुष्यता इसी तरह के मूढ़तापूर्ण सिद्धांतों के कारण पैदा हुई है। खबरें थीं अखबारों में, वे तुम्हारे काम पड़ेंगी। और कहीं नारद जी मिल जाएं तो उनको भी बता देना। खबरे होती है छोटी बच्चियों का किसी स्वामीनारायण संप्रदाय के प्रमुख ने बलात्कार किया, और कही मंदिर के ब्रह्मचारी पूजारी ने अनैतिक संबंध रखकर धोखा दे कर अंधश्रद्धा में आकर किसी युवती का बलात्कार किया, कही बच्चियों का बलात्कार तो कही युवती का किसी प्रेमी ने गला काट दिया, और भी कई सारी खबरे न मालूम कितनी होगी और अभी। कैसा मजा है! और यह सब धर्म के नाम पर चलता है। और ये खबरें रोज होती हैं। और यह सदियों से हो रहा है। जिम्मेवार कौन है? ये पुजारी, मौलवी ये पादरी लोग जिन्होंने इस नारद के जैसे लोग, वही जिम्मेवार लोग है। ऐसी वर्जना ही मूर्खतापूर्ण है।
इस पृथ्वी पर आधी स्त्रियां हैं, आधे पुरुष हैं--सच तो यह है, स्त्रियां थोड़ी ज्यादा हैं, पुरुष थोड़े कम हैं। क्योंकि स्त्रियां पुरुषों से ज्यादा मजबूत हैं। पुरुषों को यह भ्रांति है कि वे मजबूत हैं। वे गलती में हैं। उनको विज्ञान का कुछ पता नहीं है। प्रकृति को ज्यादा पता है। प्रकृति एक सौ पंद्रह लड़के पैदा करती है और सौ लड़कियां पैदा करती है। विवाह की उम्र आते-आते पंद्रह लड़के खतम हो जाते हैं, सौ ही बचते हैं। तो प्रकृति पहले से ही ‘स्पेयर’ तैयार करती है। पंद्रह ‘स्पेयर’। क्योंकि इनका कोई भरोसा नहीं। ये कब टांय-टांय फिस्स हो जाएं, इनका कुछ पक्का नहीं। लड़की मजबूत काठी की होती है। ऐसे कोई टांय-टांय फिस्स होने वाली नहीं है। सौ लड़कियां और एक सौ पंद्रह लड़के, यह अनुपात है। और शादी की उम्र होते-होते बराबर हो जाते हैं। फिर लड़कियां पांच साल ज्यादा जीती हैं। अगर पुरुष पचहत्तर साल जीएगा तो लड़की अस्सी साल जीएगी। तो स्वभावतः पृथ्वी पर हमेशा ज्यादा स्त्रियां होंगी। क्योंकि कई पुरुषों को दफना चुकी होंगी। और पुरुष की मूर्खता और यह है कि वह शादी करते वक्त अपनी उम्र ज्यादा चाहता है लड़की से। लड़की की उम्र अगर बीस तो लड़के की पच्चीस। इसका मतलब यह हुआ कि पांच साल का यह फर्क और पांच साल का प्रकृति का फर्क, दस साल का अंतर पड़ जाएगा आखिर में। यह भइया दस साल पहले रामनाम सत्य हो जाएगा इनका। स्त्री पढ़ी-लिखी कम होनी चाहिए। इसलिए सदियों से: वेद न पढ़े, उपनिषद न पढ़े। उसके लिए तो कचरा!--रामायण वगैरह पढ़ती रहे! ये बाबा तुलसीदास जो लिख गए हैं, उसको पढ़ती रहे। बाकी असली कोई चीजें न पढ़े। रामलीला देखती रहे। और देखती रहे स्त्री के साथ होता हुआ अत्याचार, कि जब मर्यादा पुरुषोत्तम तक यह व्यवहार कर रहे हैं सीता के साथ, तो उसके पतिदेव उसके साथ जो कर रहे हैं, वह ठीक ही है। स्त्री को चुपचाप स्वीकार करना चाहिए। गर्भवती स्त्री को घर से निकाल रहे हैं। तो अगर पतिदेव गर्भवती स्त्री को भी घर से निकाल दें, तो भी उसे स्वीकार करना चाहिए। और मजा देखते हो, रावण के यहां से जब राम लेकर आए सीता को तो अग्नि-परीक्षा अकेली सीता को देनी पड़ी! और ये भइया! भइया ही थे! कम से कम इतना तो करते कि जब सात चक्कर लगाए थे और घनचक्कर बने थे, तब साथ-साथ चक्कर लगाए थे, कम से कम अग्नि-परीक्षा में साथ-साथ उतरे होते। यह भी कोई बात हुई! और सीता अगर इतने दिन अलग रही थी, तो ये भइया भी तो अलग रहे थे! और न मालूम किस-किस तरह के लोगों के साथ रहे थे--अंदरों-बंदरों के साथ, इनका क्या भरोसा! कौन-कौन से काम न करते रहे हों! कम से कम सीता तो एक भले आदमी के हाथ में थी, जिसने कोई दुर्व्यवहार नहीं किया। रावण ने सीता के साथ कोई दुर्व्यवहार नहीं किया। रावण ने सीता के शरीर को भी स्पर्श नहीं किया। इससे ज्यादा दुर्व्यवहार तो राम और लक्ष्मण ने किया--शूर्पणखा की नाक काट ली। राम के सामने। और राम कुछ बोले नहीं; विरोध भी न किया। और शूर्पणखा ने ऐसा कौन-सा कसूर किया था! प्रणय-निवेदन किया था। प्रत्येक स्त्री को हक है। और प्रत्येक पुरुष को हक है। इनकार कर देते कि भई, मैं राजी नहीं, कि मेरा इरादा नहीं, कि मैं विवाहित हूं। नाक वगैरह काटने की क्या जरूरत आ गई थी! ये लक्ष्मण आदमी हैं? यह भली स्त्री प्रेम का निवेदन कर रही है, तो कह देते कि नहीं भई, मैं पहले ही से नियोजित हूं, पहले ही से फंस गया, अब क्या करूं? अब मुझे माफ करो, कहीं और खोजो!
जब राम स्वर्णमृग की तलाश में चले गए...क्या गजब के राम थे! अरे, कहीं सोने के हिरण होते हैं! किसी बुद्धू को भी भरोसा दिलाना मुश्किल है। स्वर्णमृग दिखाई पड़ गया और उसकी खोज में चले गए। और यह राम थे! और इनको तीनों काल का ज्ञान है! और यह मृग झूठा है, इतना ज्ञान नहीं! त्रिकालज्ञ हैं! सर्वांतर्यामी हैं! घट-घट का इनको पता है! इसी एक घट का पता नहीं है! चल पड़े! और लक्ष्मण को कह गए--पहरा देना। और जब राम ही धोखा खा गए...! और सीता की अग्नि-परीक्षा ली गई! रामलीला दिखाई जा रही है स्त्रियों को कि देखो, तुम्हारे पतिदेव ऐसी परीक्षा लेंगे। घबड़ाना मत, परीक्षा देना। देखो, सीता मइया आग में से निकलीं और बिलकुल बच कर निकल आईं। ऐसे ही तुम भी आग में से निकलो। तुम भी बच कर निकल आओगी। इस पागलपन में मत पड़ना। इस आग में से कोई बच कर नहीं निकलता। न सीता मइया निकली हैं, न कोई और मइया निकल सकती हैं। आग को कुछ नहीं पड़ी है। ये अधर्म की आग है। यह रामलीला दिखाई जाती है स्त्रियों को। रामचरितमानस पढ़ो, तुलसीदास की चौपाइयां रटो, ‘ढोल गंवार शूद्र पशु नारी, ये सब ताड़न के अधिकारी’--इनको कंठस्थकरो। मगर वेद, उपनिषद, ब्रह्मज्ञान की बातों में मत पड़ना। उन ऊंचाइयों से स्त्रियों को वंचित रखा जाता है। ताकि पतिदेव ब्रह्मज्ञानी मालूम पड़ें, स्त्री अज्ञानी मालूम पड़े।आज भी वही हालत है शास्त्र बस आधुनिक हो गए है ।
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