जीवन काल

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सच्चा धार्मिक व्यक्ति शुरू से ही शुरू करता है। वह पूछता है: मैं कौन हूं? और इस पूछने में कुछ भी पहले से स्वीकार मत करना। क्योंकि जो भी तुमने स्वीकार कर लिया; वही बाधा हो जाएगा। कोई भी सम्यक अन्वेषण, कोई भी सच्ची खोज पक्षपातों से शुरू नहीं होती; निष्पक्ष होकर शुरू होती है। जो आदमी पहले से ही हिंदू है, मुसलमान है, जैन है, ईसाई है, वह कभी सत्य को उपलब्ध नहीं हो सकेगा। उसने तो सत्य को पाने के पहले ही तय कर लिया कि सत्य क्या है! यह तो कोई वैज्ञानिक खोज न हुई। यह तो बड़ी अंधविश्वास की बात हुई। तुमने पहले ही तय कर लिया कि अभी रात है--चाहे अभी दिन हो--और चले तुम अपनी परिकल्पना को सिद्ध करने। और ध्यान रखना, मन बहुत होशियार है। तुम जो सिद्ध करना चाहो, उसी के पक्ष में दलीलें इकट्ठी कर लेगा। जगत बड़ा है, यहां हर चीज के लिए दलीलें उपलब्ध हो जाती हैं। सम्यक अन्वेषण विश्वास से शुरू नहीं होता। न ही सम्यक अन्वेषण अविश्वास से शुरू होता है। सम्यक अन्वेषण पक्ष नहीं, विपक्ष नहीं, एक निर्मल भाव से शुरू होता है, जिज्ञासा से शुरू होता है, एक खुले मन से शुरू होता है। एकदम से जलस्रोत न आ जाएंगे ऐसे कि तुम उन्हें पी लो। कीचड़ आएगी, खोदे जाना; गंदा जल आएगा, खोदे जाना; एक दिन जरूर वह घड़ी आ जाएगी कि निर्मल जलस्रोत तुम्हारे भीतर तुम्हें उपलब्ध हो जाएंगे। और जब अपने भीतर के जलस्रोतों को कोई पीता है, तो तृप्ति, तो संतोष, तो सच्चिदानंद!

पांच तत्व की कोठरी तामें जाल जंजाल।

यह जो पांच तत्वों से बना हुआ शरीर है वो तुम्हारा मंदिर है, यह जो तुम्हारा घर है यह बहुत जटिल है। यह कोई छोटी घटना नहीं है। चमड़ी के ऊपर से देखो तो तुम्हें पता ही नहीं चलता कि तुम्हारे भीतर कितनी जटिलता है। तुम एक पूरा संसार हो।

जीव तहां बासा करै, निपट नगीचे काल

और इस पांच तत्व की कोठरी में, इस देह के मंदिर में तुम्हारी आत्मा का वास है, जीवन बसा हुआ है इस नगर में। और एक चमत्कार कि यह जीवन है शाश्वत जीवन, जिसका न कभी प्रारंभ हुआ और न कभी अंत होगा, फिर भी यह मौत के ही पास बसा हुआ है, मौत के पड़ोस में बसा हुआ है। तुम्हारे पास ही बैठी है तुम्हारी मौत, इंच भर का भी फासला नहीं है, कब तुम्हें पकड़ लेगी पता नहीं है; एक क्षण और बचोगे या नहीं, इसका भी भरोसा नहीं है; कल होगा या नहीं, कोई भी नहीं कह सकता। और फिर भी आश्चर्यों का आश्चर्य यह है कि तुम अमृतधर्मा हो। इस जगत का सबसे बड़ा रहस्य न तो ताजमहल है, न बेबीलोनिया का गिर गया मीनार है जिस पर ज्योति सदा जलती रहती थी, बिना तेल के--बिन बाती बिन तेल--न चीन की दीवाल है। इस जगत का सबसे बड़ा आश्चर्य एक है कि मनुष्य अमृतधर्मा हो, जीवंत रहो भी और काल से भी परिचित रहो डरो मत। 

एक सम्राट ने रात स्वप्न देखा कि एक काली भयंकर छाया ने उसके कंधे पर हाथ रख दिया है; लौट कर देखा, घबड़ा गया। थर-थर कांपने लगा सपने में भी। ऐसे तो बहादुर आदमी था, युद्धों में लड़ा था, तलवारों से खेला था, तलवार की धार ही उसकी जिंदगी थी, मगर थर-थर कांप गया। पूछा: तू कौन है? वह काली छाया खिलखिला कर हंसी और उसने कहा: मैं तेरी मौत हूं। और तुझे आगाह करने आई हूं कि कल सूरज डूबने के पहले तैयार रहना, मैं लेने आ रही हूं। इधर सूरज डूबा, उधर तू डूबा। ऐसी बात सुन कर कोई सो सकता था फिर? नींद टूट गई। आधी रात थी, पसीने-पसीने था सम्राट। उसी क्षण खतरे के घंटे बजाए गए। सेनापति इकट्ठे हो गए। मगर सेनापति क्या करेंगे मौत के सामने? घुड़सवारों ने सारे महल को घेर लिया, नंगी तलवारें चमकने लगीं रात के अंधेरे में, लेकिन नंगी तलवारें क्या करेंगी मौत के सामने? घुड़सवार क्या करेंगे? तोपों पर गोले चढ़ा दिए गए। मगर तोपों के गोले क्या करेंगे? वजीर ने कहा: आप यह क्या कर रहे हैं? सपना तो सपना है। यहां सच सपने हो जाते हैं, आप सपने को सच मान कर चल रहे हैं? यहां सत्यों का भरोसा नहीं है, आप सपने का भरोसा कर रहे हैं? फिर यह सब इंतजाम व्यर्थ हैं। सम्राट वजीर की सुन नहीं रहा है उसका मन तो उसी मृत्यु काल पर टिका हुआ था और पूछ रहा है अब मैं क्या करूं? उस वजीर ने फिर से कहा आप समझ ही नहीं रहे तो अब फिर आपके पास इतना तेज अरबी घोड़ा है, आप उस पर बैठ कर जितनी दूर निकल सकें निकल जाएं। यह महल खतरनाक है। यहां मौत ने आपको दर्शन दिए हैं। इस महल से जितनी दूर हो जाएं उतना अच्छा है। यह महल अपशगुन है। बात जंची। सम्राट अपने घोड़े पर सवार हुआ और भागा। बड़ा तेज घोड़ा था। सैकड़ों मील निकल गया सांझ होते-होते। बड़ा खुश था! जब सांझ को सूरज डूबने के करीब, आखिरी किरणें अस्त होती थीं, उसने एक बगीचे में जाकर- दमिश्क के- अपने घोड़े को बांधा, घोड़े को बांध कर बड़े प्रेम से उसे गले लगाया, घोड़े को थपथपाया और कहा कि धन्यवाद है तेरा कि तू सैकड़ों मील दूर ले आया उस अपशगुन के स्थान से। लेकिन तभी फिर खिलखिलाहट की हंसी सुनाई पड़ी। पीछे लौट कर देखा, वही मौत खड़ी थी। वही काला चेहरा। सम्राट ने कहा: क्या तू फिर आ गई? खिलखिलाहट का कारण? उस मौत ने कहा कि धन्यवाद तुम्हें नहीं देना चाहिए घोड़े को, मुझे देना चाहिए, क्योंकि मैं बड़ी चिंतित थी--क्योंकि मौत तुम्हारी इस झाड़ के नीचे घटनी है और मैं डरी थी कि घोड़ा तुम्हें समय पर ले आ पाएगा यहां, पहुंचा पाएगा या नहीं पहुंचा पाएगा? लेकिन तुम ठीक समय पर ठीक जगह आ गए। भागो कहीं, एक न एक दिन ठीक जगह पर पहुंच जाओगे जहां मौत तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही है। मौत से भागो तो भी मौत में ही पहुंचोगे।

स्वभावतः तुम्हें सागर तो दिखाई पड़ता है मृत्यु का, जो चारों तरफ लहरें है जीवन की और अमृत स्वभाव दिखाई नहीं पड़ता है। जो उस स्वभाव को जान लेता है, वह मुक्त हो जाता है। जो उस स्वभाव को जान लेता है, उसके जीवन में अमी-रस की वर्षा हो जाती है।



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