सहजता

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शब्द और शून्य का मिलन होता है वहीं महासंगीत है। जहां योग का और सहज का मिलन हो जाता है वहां जीवन में परम का अवतरण हो जाता है। लाओत्सु ने इसी को वू-वे कहा है। वू-वे का अर्थ होता है: अकर्म के द्वारा कर्म, या कर्म के द्वारा अकर्म। उदाहरण के लिए, तुम ध्यान के लिए कितना ही श्रम करो ध्यान नहीं होगा; लेकिन तुम्हारा किया हुआ श्रम रास्ता बनाएगा जिसमें से ध्यान एक दिन उतर आएगा। अकसर ऐसा होता है कि जब तुम ध्यान करने बैठते हो तब ध्यान नहीं होता; लेकिन बैठते रहो, बैठते रहो, बैठते रहो एक दिन अचानक तुम पाओगे, तुम ध्यान करने बैठे भी नहीं थे और ध्यान घटा! हो सकता है, तुम बगीचे में काम करते थे कि सुबह घूमने निकले थे, कि अकेले बैठे थे, कुछ भी न कर रहे थे, घर में कोई भी न था, सन्नाटा था--और अचानक एक ज्योतिपुंज ने तुम्हें घेर लिया। और अचानक तुम्हारे भीतर ऊर्जा छलांगें लेने लगी। मैडम क्यूरी ने तीन वर्ष तक गणित के सवाल को हल करने की कोशिश की और न कर पायी। एक सांझ थक गई। उसने उस सवाल को छोड़ ही दिया उस सांझ कि अब नहीं। बहुत हो गया, तीन साल खराब हो गए, यह नहीं होना है मालूम होता है। ऐसा सोचकर उस रात वह सोयी और बीच रात सपने में उठी। नींद में ही, सपने में ही सवाल का उत्तर आ गया था। गई टेबल पर नींद में और टेबल पर जाकर सवाल का जवाब लिखकर वापस बिस्तर पर सो गई। सुबह जब उठी और अपनी टेबल साफ करती थी तो चकित हुई: उत्तर मौजूद था! यह आया कहां से, उसे तो याद भी नहीं रही थी! कमरे में कोई दूसरा व्यक्ति था भी नहीं और होता भी तो मैडम क्यूरी जिसको तीन साल में हल नहीं कर पायी उसको दूसरा व्यक्ति कौन हल कर लेता! कमरे में कोई था भी नहीं। ताला भीतर से बंद था, रात जब वह सोयी थी। ताला अभी भी बंद था। कमरे में कोई आ नहीं सकता। फिर उसने गौर से देखा, हस्ताक्षर थोड़े अस्त-व्यस्त थे लेकिन उसी के हैं। तब उसने याद करने की कोशिश की आंख बंद करके, तो उसे याद आया कि उसने एक सपना देखा था रात कि सपने में वह उठी है और कुछ लिख रही है। तब उसे पूरी बात याद आ गई। यह उत्तर उसी के भीतर से आया है। तीन साल तक सतत श्रम करने से नहीं आया है। आज की रात क्यों? तीन साल योग सधा, आज की रात सहज फला। मगर उस योग की खाद है, उस खाद से ही सहज फूल खिलता है।जीसस ने कहा है: जो बचाएगा मिट जाएगा। जो मिट जाएगा, वही बच रहता है। और जीसस ने कहा है: जो अंतिम है वह प्रथम हो जाएगा और जो प्रथम है वह अंतिम पड़ जाएगा। ऐसे भी क्षण होते हैं जीवन में जब हार जीत हो जाती है। उसी को हम प्रेम का क्षण कहते हैं। वही प्रेम का जादू है: जहां हार जीत हो जाती है। और इसी सहज से घटित होते योग आयाम को हम सहजता कहेंगे। 

वे अधूरे स्वप्न ही जो,
हो नहीं साकार पाए।
एक प्रिय वरदान ले फिर,
इन दृगों में आ समाए।
साधना ही अब हृदय की,
मीत होती जा रही है!
हार ही अब तो हृदय की,
जीत होती जा रही है!
खो दिया अस्तित्व मैंने,
अब किसी का पा सहारा।
हार कर भी कह रहा मन,
मैं न हारा, मैं न हारा।
आज जीवन से मुझे कुछ,
प्रीत होती जा रही है!
हार ही अब तो हृदय की,
जीत होती जा रही है!
बंधनों में बंध गया है,
स्वयं ही उन्मुक्त जीवन।
मुक्ति से प्यारा मुझे है,
कल्पना का मधुर बंधन।
वेदना उर की अमर,
संगीत होती जा रही है!
हार ही अब तो हृदय की,
जीत होती जा रही है।

हार जीत हो जाती है, ऐसा प्रेम का जादू है। और योग  सहजता हो जाता है।


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