कागज की नाव
मनुष्य बड़ा कल्पनाशील है। वह जिनको भी चाहता है उनके आस-पास कल्पना के और कविताओं के बड़े जाल बुन देता है। और उन कविताओं और कल्पनाओं के जाल में सच्चे ऐतिहासिक लोग भी खोटे हो जाते हैं, झूठे हो जाते हैं। लोग तो महिमा के लिए कल्पनाओं के जाल बुनते हैं, लेकिन उनको पता नहीं, उन्हीं महिमाओं में उनके सदपुरुष डूब जाते हैं। क्योंकि उन्हीं महिमाओं के कारण वे सदपुरुष झूठे मालूम होने लगते हैं। कि कृष्ण ने अपनी अंगुली पर पर्वत उठा लिया! अब इस तरह के झूठ तुम चलाओगे तो इससे यह मत समझना कि कृष्ण की गरिमा बढ़ती है। इससे सिर्फ इतना ही होता है कि कृष्ण भी झूठे हो जाते हैं। हां, अगर पर्वत ऐसा ही कोई रहा हो जैसा रामलीला वगैरह में होता है, जिसको हनुमान जी उठा कर लाते हैं, कागज का बना हुआ, तो बात अलग। ऐसा कोई गोवर्धन रहा हो, कागज का बना हुआ, कोई रामलीला चल रही हो और उसमें उठाया हो तो ठीक, चलेगा। लेकिन रामलीला में भी झूठ प्रकट होने में देर नहीं लगती। एक गांव में रामलीला हुई। लक्ष्मण जी बेहोश पड़े हैं और हनुमान जी गए हैं संजीवनी बूटी लेने। तय नहीं कर पाते कौन सी संजीवनी बूटी है, तो पूरा पहाड़ ही ले आते हैं। पहाड़ लिए चले आ रहे हैं। अब रामलीला, और गांव की रामलीला! एक रस्सी पर पहाड़ है, उसी रस्सी पर वे भी हैं। रस्सी पर कागज का पहाड़ हाथ में सम्हाले, रस्सी से बंधे, आकाश में उड़ते चले आ रहे हैं। गांव की घिर्री, भारतीय घिर्री, अटक गई। हनुमान जी अटके हैं साथ पहाड़ के। रामचंद्र जी नीचे से खड़े देख रहे हैं। लक्ष्मण जी भी थोड़ी-थोड़ी आंख खोल कर देख लेते हैं कि देर क्यों लग रही है? और जनता ताली पीट रही है। और जनता ने ऐसा खेल कभी देखा भी नहीं, अब यह होगा क्या? इसका अंत क्या होगा? आखिर मैनेजर घबड़ा गया। वह गांव का ही मामला; गांव के ही मैनेजर। वह घबड़ा कर ऊपर चढ़ा कि किसी तरह रस्सी को सरका दे, हनुमान जी उतरें पहाड़ सहित। नहीं सरकी रस्सी, गांठ खा गई। जल्दी में घबड़ाहट में कुछ और नहीं सूझा, चाकू से उसने रस्सी काट दी। तो साथ पहाड़ के हनुमान जी नीचे गिरे। मगर अब बंधा-बंधाया पाठ। तो रामचंद्र जी को तो वही कहना है। तो उन्होंने कहा कि ले आए पवनसुत, संजीवनी ले आए? हनुमान जी ने कहा, ऐसी की तैसी पवनसुत की! पहले यह बताओ रस्सी किसने काटी? अगर उसकी मैंने अभी मरम्मत नहीं की तो मेरा नाम बलवंत सिंह नहीं। भूल ही गए कि हनुमान हैं, बलवंत सिंह! कि पहले उसको निपटाऊं, फिर लक्ष्मण जी, और सब को देख लूंगा। रामलीला में भी तो झूठ ज्यादा देर नहीं चल सकता। वहां भी फंस जाती है रस्सी। और तुमने तो राम को भी झूठा कर दिया, कृष्ण को भी झूठा कर दिया, महावीर को झूठा कर दिया, बुद्ध को झूठा कर दिया। तुम झूठा करने में कुशल हो। हालांकि तुमने बड़ी अच्छी इच्छाओं से किया, मगर अच्छी इच्छाओं से क्या होता है? अंग्रेजी में कहावत है: नरक का रास्ता शुभाकांक्षाओं से पटा पड़ा है। अच्छी-अच्छी आकांक्षाएं! तुमने तो यही सोचा, इससे गरिमा बढ़ेगी, लोगों में भक्ति-भाव बढ़ेगा। लोग कहेंगे, अहा, कृष्ण ने पर्वत उठा लिया--गोवर्धनधारी! कि हनुमान जी पहाड़ उठा लाए--पवनसुत! लोगों में प्रतिष्ठा बढ़ेगी। लोगों में पूजा बढ़ेगी, अर्चना बढ़ेगी। बढ़ती रही होगी जब तक लोगों में बुद्धि कम थी। लेकिन अब बुद्धि का विकास हुआ है। अब इन सारी बातों से काम नहीं चलेगा। अब तो तुम्हें एक सत्य समझना होगा कि झूठी कविताएं और झूठे काव्य और झूठे पुराण, जो अतीत में काम आ गए थे, अब काम नहीं आएंगे। डुबाएंगे तुम्हें बुरी तरह; पार नहीं जाने देंगे। कागज की नावें हैं, ये काम नहीं आएंगी।
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