संसार और सन्यास
ध्यान रहे, जिसको तुमने संसार समझा है, वह संसार नहीं है। घर-द्वार, पत्नी-बच्चे, बाजार-दुकान--यह सब संसार नहीं है। इसको तो छोड़ देना बड़ा आसान। इसको तो बहुत भगोड़े छोड़ कर भाग गए। मगर सवाल यह है कि क्या संसार उनसे छूटा? बैठ जाओ गुफा में हिमालय की, फिर भी संसार तुम्हारे साथ होगा। क्योंकि संसार तुम्हारे मन में है। और मन है अतीत और भविष्य का जोड़। जहां वर्तमान है, वहां मन नहीं। मैं तुमसे कहना चाहता हूं कि संसार बाहर नहीं है। संसार भी भीतर है और संन्यास भी भीतर है। संसार भी तुम्हारे मन की एक अवस्था है और संन्यास भी। संसार है अतीत और भविष्य में डोलना। और संन्यास है वर्तमान में थिर हो जाना।
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