सगुण निर्गुण की अभिव्यक्ति का नाम है
परमात्मा निर्गुण है। परमात्मा बीज-रूप है। जब प्रकट होता है तो गुण दिखाई पड़ते हैं, जब अप्रकट हो जाता है तो गुण खो जाते हैं। एक आदमी अच्छा है, एक आदमी बुरा है; एक आदमी चोर है, एक आदमी साधु है; दोनों सो गए, दोनों विगुण हो गए। सुषुप्ति में कोई गुण नहीं रह जाता--साधु साधु नहीं रह जाता, चोर चोर नहीं रह जाता। और सुषुप्ति में निजता के बहुत करीब होते हैं, वे एकदम करीब होते हैं, वहां कोई गुण नहीं रह जाता। सुषुप्ति में चोर चोर नहीं है, साधु साधु नहीं है। हां, जागेंगे तो चोर चोर हो जाएगा, साधु साधु हो जाएगा। जागते ही गुण आएंगे, सोते ही गुण सो जाएंगे। सुषुप्ति में हम अपनी निजता के बहुत करीब होते हैं, समाधि में तो हम निजता में ही पहुंच जाते हैं। तो ठीक निजता का जो अनुभव है, स्वभाव का जो अनुभव है, वह निर्गुण होगा। लेकिन स्वभाव की जो अभिव्यक्ति है, मैनीफेस्टेशन है, वह सगुण होगी। सगुण और निर्गुण दो चीजें नहीं हैं। सगुण और निर्गुण विरोधी चीजें नहीं हैं। सगुण निर्गुण की अभिव्यक्ति का नाम है।
एक झेन कहानी है। एक झेन साधु अपने शिष्यों को चित्र बनाना सिखाता है। चित्रों से ध्यान के मार्ग पर ले जाता है। कहीं से भी जाया जा सकता है। जगत में जो भी कोई जगह है, वहीं से ध्यान तक जाया जा सकता है। उसके दस शिष्य एक दिन सुबह इकट्ठे हुए हैं और उसने कहा कि तुम जाओ और एक चित्र की मैं तुम्हें रूपरेखा देता हूं। वह रूपरेखा यह है कि एक गाय, घास से भरे मैदान में, घास चर रही है। तुम यह चित्र बना लाओ। लेकिन ध्यान रहे, चित्र निर्गुण हो।
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