उद्यम ही भैरव है
शिव कहते हैं: ‘उद्यम ही भैरव है।’
और जिस दिन भी तुमने आध्यात्मिक जीवन की चेष्टा शुरू की, तुम भैरव होने लगे; तुम परमात्मा के साथ एक होने लगे। तुम्हारी चेष्टा की पहली किरण, और तुमने सूरज की तरफ यात्रा शुरू कर दी। पहला खयाल तुम्हारे भीतर मुक्त होने का, और ज्यादा दूर नहीं है मंजिल; क्योंकि पहला कदम करीब-करीब आधी यात्रा है।
पाओगे, देर लगेगी, मंजिल पहुंचने में समय लगेगा। लेकिन तुमने चेष्टा शुरू की, और तुम्हारे भीतर बीज आरोपित हो गया कि मैं उठूं इस कारागृह के बाहर; मैं जाऊं, शरीर से मुक्त होऊं; मैं हटूं वासना से; मैं अब और बीज न बोऊं इस संसार को बढ़ाने के; मैं और जन्मों की आकांक्षा न करूं। तुम्हारे भीतर जैसे ही यह भाव सघन होना शुरू हुआ कि अब मैं मूर्च्छा को तोडूं और चैतन्य बनूं, वैसे ही तुम भैरव होने लगे; वैसे ही तुम ब्रह्म के साथ एक होने लगे। क्योंकि वस्तुतः तो तुम एक हो ही, सिर्फ तुम्हें स्मरण आ जाए। मूलतः तो तुम एक हो ही। तुम उसी सागर के झरने हो, तुम उसी सूरज की किरण हो, तुम उसी महा आकाश के एक छोटे से खंड हो। पर तुम्हें स्मरण आना शुरू हो जाए और दीवारें विसर्जित होने लगें, तो तुम उस महा आकाश के साथ एक हो जाओगे।
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