पंचतत्व
भूतकंचुकी- यह शब्द बड़ा प्यारा है। भूतकंचुकी का अर्थ है: पांचों तत्व, जिनसे शरीर बना है, उसके लिए वस्त्र जैसे हो गए, भूत कंचुक हो गए। जिसके लिए शरीर, मन--क्योंकि दोनों ही पंच भूतों से बने हैं; यह स्थूल पंच भूतों से जो बना है वह शरीर और जो सूक्ष्म पंच तन्मात्राओं से बना है वह मन, ये दोनों एक के ही सूक्ष्म और स्थूल रूप हैं--ये दोनों ही जब वस्त्रों जैसे हो गए, और उसने अपने को पहचान लिया जो इन वस्त्रों के भीतर छिपा है; जिसने प्याज को पूरा खोल लिया; भीतर के शिवत्व को, शून्यत्व को जान लिया; ऐसा भूतकंचुकी, विमुक्त पुरुष स्वयं परमात्मा हो जाता है।
हम इस देश में किसी एक परमात्मा में भरोसा नहीं करते कि कोई एक परमात्मा आकाश में बैठा है, वह सब को चला रहा है। नहीं; हम इस देश में, सभी जीवन-यात्राओं का अंत परमात्मा में होता है, ऐसा भरोसा करते हैं। यहां सभी खिलते-खिलते परमात्म-रूप हो जाते हैं। परमात्मा कोई स्थिति नहीं है, सभी का भविष्य है। इस बात को थोड़ा गहराई में समझ लो।
दुनिया में दूसरे धर्म हैं, जो भारत के बाहर पैदा हुए--ईसाइयत, यहूदी, इसलाम, वे तीन बड़े धर्म भारत के बाहर पैदा हुए। तीन बड़े धर्म भारत में पैदा हुए--हिंदू, बौद्ध, जैन। इन दोनों के बीच एक बुनियादी फर्क है। और वह बुनियादी फर्क है कि यहूदी, ईसाई और इसलाम परमात्मा को पीछे देखते हैं--आदि कारण की तरह--उसने जगत को बनाया। हम परमात्मा को आगे देखते हैं--अंतिम फल की तरह। इससे बड़ा फर्क पड़ता है। परमात्मा भविष्य है, अतीत नहीं। परमात्मा बीज नहीं है, फूल है। इसलिए हमने बुद्धों को फूल पर बिठाया है--कमल का फूल, सहस्रदल जिसके खिल गए हैं। अगर परमात्मा पीछे है, दुनिया को उसने बनाया, तो वह एक है। और तब दुनिया एक तरह की तानाशाही होगी। और इस दुनिया में मोक्ष घटित नहीं हो सकता। क्योंकि स्वतंत्रता कैसी जब तुम बनाए गए हो? बनाए हुए की कोई स्वतंत्रता होती है? जिस दिन बनाने वाला मिटाना चाहेगा, मिटा देगा। जब वह बना सका तो मिटाने में क्या बाधा पड़ेगी? तब तुम खेल-खिलौने हो, कठपुतलियां हो। तब तुम्हारी आत्मा और स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं है।
इसलिए हम परमात्मा को स्रष्टा की तरह नहीं देखते, हम परमात्मा को अंतिम निष्पत्ति की तरह देखते हैं। वह तुम्हारा अंतिम विकास है। तो परमात्मा विकास का प्रथम चरण नहीं, अंतिम शिखर है। वह गौरीशंकर है। वह कैलाश है। वह आखिरी शिखर है जहां सभी चेतनाएं अंततः पहुंच जाएंगी; जिस तरफ सभी की यात्रा चल रही है। देर-अबेर सभी को वहां पहुंच जाना है। तुम रोज-रोज हो रहे परमात्मा हो।
तो परमात्मा कोई एक घटना नहीं है जो घट गई; परमात्मा एक प्रवाह है जो प्रतिपल घट रहा है। परमात्मा प्रतिक्षण हो रहा है। वह तुम्हारे भीतर बढ़ रहा है। तुम परमात्मा के गर्भ हो।
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