मित्ति मे सब्ब भुएषु वैरं मज्झ न केवई।
महावीर ने कहा है, ‘मित्ति मे सब्ब भुएषु वैरं मज्झ न केवई। सब मेरे मित्र हैं और किसी से मेरा वैर नहीं है।’
यह कोई विचार नहीं है, यह भाव है। यानी यह कोई सोच-विचार नहीं है, यह भाव की स्थिति है कि कोई मेरा शत्रु नहीं है। और कोई मेरा शत्रु नहीं, यह कब होता है? जब मैं किसी का शत्रु नहीं रह जाता हूं। यह तो हो सकता है कि महावीर के कुछ शत्रु रहे हों, लेकिन महावीर कहते हैं, कोई मेरा शत्रु नहीं है। इसका मतलब क्या है? इसका मतलब है, मैं किसी का शत्रु नहीं। और महावीर कहते हैं, मेरा वैर किसी के प्रति नहीं है। कितने आनंद की घटना घटी होगी!
आप एक व्यक्ति को प्रेम कर लेते हैं, कितना आनंद उपलब्ध होता है। और जिस व्यक्ति को सारे जगत को प्रेम करने की संभावना खुल जाती होगी, उसके आनंद का कोई ठिकाना है! यह सौदा महंगा नहीं है। आप खोते कुछ नहीं हैं और पा बहुत लेते हैं।
इसलिए मैं महावीर को, बुद्ध को त्यागी नहीं कहता हूं। इस जगत में सबसे बड़ा भोग उन्हीं लोगों ने किया है। इस जगत में सबसे बड़ा भोग उन्हीं लोगों ने किया है। त्यागी आप हो सकते हैं, वे नहीं। आनंद के इतने अपरिसीम अनंत द्वार उन्होंने खोले। इस जगत में जो भी श्रेष्ठतम था, जो भी सुंदर था, जो भी शुभ था, सबको उन्होंने पीया और जाना। और आप क्या जान रहे हैं? सिवाय जहर के आप कुछ भी नहीं जान रहे हैं। और उन्होंने अमृत को जाना।
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