ब्रह्म

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यह बड़े मजे की बात है कि इस मुल्क ने ब्रह्म शब्द को नपुंसकलिंग में रखा है। ब्रह्म पुरुष है कि स्त्री? नहीं, ब्रह्म इंपोटेंट है। वह जो कि ओमनीपोटेंट है, वह जो कि सर्वशक्तिमान है, उसको हमने जो लिंग रखा है वह नपुंसकलिंग में रखा है। क्योंकि वह कैसे स्त्री हो सकता है? वह पक्ष हो जाएगा। वह कैसे पुरुष हो सकता है? वह पक्ष हो जाएगा। वह निष्पक्ष है। निष्पक्ष है, तो वह पचास-पचास दोनों पूरा है, तभी निष्पक्ष हो सकता है। अर्द्धनारीश्र्वर की कल्पना ब्रह्म की कल्पना है। उसमें नारी-तत्व और पुरुष-तत्व आधा-आधा है। वह दोनों है एक साथ। क्योंकि वह दोनों नहीं है। अगर पुरुष है, तो स्त्री-तत्व का इस जगत में कहां से आविर्भाव होगा? अगर वह स्त्री है, तो पुरुष-तत्व कहां से आएगा? कहां से शुरू होगा? कहां से पैदा होगा? वह दोनों ही है। एक साथ दोनों है। इसलिए दोनों को पैदा कर पाता है।

और हम जब तक स्त्री हैं और पुरुष हैं, तब तक हम परमात्मा के टूटे हुए दो हिस्से हैं। इसलिए स्त्री-पुरुष का आपसी आकर्षण एक होने का आकर्षण है। स्त्री-पुरुष का आकर्षण पूरा होने का आकर्षण है। वे आधे-आधे हैं। अर्द्धनारीश्र्वर की हमारी कल्पना और हमारी प्रतिमा बड़ी अनूठी है। दुनिया ने बहुत प्रतिमाएं बनाई हैं, लेकिन अर्द्धनारीश्र्वर में जो बहुत मनोवैज्ञानिक सत्य है, उसका कोई मुकाबला नहीं है। अर्द्धनारीश्र्वर में हम इतना ही कह रहे हैं कि परमात्मा दोनों है, एक साथ, और पूरा है। एक पहलू उसका स्त्रैण है, एक पहलू उसका पुरुष है। या ऐसा कहें कि वह दोनों का सम्मिलन है, दोनों का मध्य है; या दोनों का बियांड है, दोनों का पार है।
यह जो मैंने कहा कि परमात्मा को, ब्रह्म को, यह जो मध्य की स्थिति है, जीसस ने एक बहुत अच्छा शब्द उपयोग किया है, यूनके़ज ऑफ गॉड। जीसस ने कहा है कि जिसे प्रभु को पाना है, उसे प्रभु के लिए नपुंसक हो जाना पड़ेगा। बड़ी अजीब बात कही है। पर कही बिलकुल ठीक है। जिसे प्रभु को पाना है, उसे प्रभु जैसा होना ही पड़ेगा। इसलिए बुद्ध अपनी पूरी गरिमा में, या कृष्ण अपनी पूरी गरिमा में न स्त्री हैं, न पुरुष हैं। अपनी पूरी गरिमा में वे दोनों हैं। अपनी पूरी गरिमा में वे मिश्रित हैं। अपनी पूरी गरिमा में एक अर्थ में वे ट्रांसेंडेंटल सेक्स हैं, वे पार हो गए दोनों द्वंद्वों के और दोनों के बाहर हो गए। लेकिन हमारे बीच द्वंद्व है। मात्राओं का द्वंद्व है।

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