संयम

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संयम का बहुत गहरा अर्थ दमन नहीं है। संयम शब्द बहुत अदभुत है। संयम का मेरे लिए अर्थ है--संतुलन, बैलेंस। संयम का मेरे लिए अर्थ है--न इस तरफ, न उस तरफ--बीच में, मध्य में। त्यागी असंयमी है--त्याग की तरफ; भोगी असंयमी है--भोग की तरफ। भोगी एक छोर छू रहा है, त्यागी दूसरा छोर छू रहा है। ये दो एक्सट्रीम हैं। संयम का अर्थ है, अन-अति, एक्सट्रीम नहीं, बीच में। कृष्ण के ओंठों पर संयम का अर्थ है, मध्य में। न त्याग, न भोग। या त्यागपूर्ण भोग, या भोगपूर्ण त्याग। यही अर्थ हो सकता है संयम का कृष्ण के ओंठों पर। त्यागपूर्ण भोग, या भोगपूर्ण त्याग; या न त्याग, न भोग--संयम का ऐसा अर्थ होगा। जो कहीं भी झुकता नहीं अति पर, वह व्यक्तित्व संयमित है।

एक आदमी है, धन के पीछे पागल है। बस इकट्ठा किए जाता है, तिजोड़ी भरे चला जाता है, यह असंयमी है। धन इसका साध्य हो गया, अति हो गई इसके जीवन की। एक दूसरा आदमी धन से पीठ करके भागता है। लौट कर नहीं देखता, भागता ही चला जाता है। और सदा डरा हुआ है कि कहीं धन न मिल जाए। यह भी असंयमी है। इसके लिए धन का त्याग वैसे ही साध्य बन गया जैसे किसी के लिए धन का इकट्ठा करना साध्य था। संयमी कौन है? अन-अति संयम है, नॉन-एक्सट्रीमिटी संयम है। मध्य में होना संयम है। भूखा मरना संयम नहीं है, ज्यादा खा लेना संयम नहीं है, सम्यक आहार संयम है। उपवास संयम नहीं है--भूख की तरफ असंयम है। ज्यादा खा लेना संयम नहीं है--भोग की तरफ असंयम है। सम्यक आहार--जितना जरूरी है बस उतना ही; न ज्यादा, न कम--संयम है। कृष्ण के ओंठों पर संयम का अर्थ बैलेंस है, संतुलन है, संगीत है। जरा ही यहां-वहां हटे कि कुआं और खाई हैं। और दो तरफ आदमी हट सकता है--राग की तरफ हट सकता है, विराग की तरफ हट सकता है।

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