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इनडिविजिबल Indivisible
जो व्यक्ति भी शून्य हो जाता है, वह पूर्ण हो जाता है। शून्यता पूर्ण की भूमिका है। अगर ठीक से कहें तो शून्य ही एकमात्र पूर्ण है। इसलिए आप आधा शून्य नहीं खींच सकते। ज्यामेट्री में भी नहीं खींच सकते। आप अगर कहें कि यह मैंने आधा शून्य खींचा, तो यह शून्य नहीं रह जाएगा, आधा शून्य होता ही नहीं। शून्य सदा पूर्ण ही होता है। पूरा ही होता है। अधूरे का कोई मतलब ही नहीं होता। शून्य के दो हिस्से कैसे करिएगा? और जिसके दो हिस्से हो जाएं उसको शून्य कैसे कहिएगा? शून्य कटता नहीं, बंटता नहीं, इनडिविजिबल है, विभाजन नहीं होता। जहां से विभाजन शुरू होता है, वहां से संख्या शुरू हो जाती है। इसलिए शून्य के बाद हमें एक से शुरू करना पड़ता है। एक, दो, तीन, यह फिर संख्या की दुनिया है। सब संख्याएं शून्य से निकलती हैं और शून्य में खो जाती हैं। शून्य एक मात्र पूर्ण है। शून्य कौन हो सकता है? वही पूर्ण हो सकता है। कृष्ण को पूर्ण कहने का अर्थ है। क्योंकि यह आदमी बिलकुल शून्य है। शून्य वह हो सकता है जिसका कोई चुनाव नहीं। जिसका चुनाव है, वह तो कुछ हो गया। उसने समबडीनेस स्वीकार कर ली। उसने कहा कि मैं चोर हूं, यह कुछ हो गया। शून्य कट गया। उसने कहा कि मैं साधु हूं, यह कट गया, शून्य कट गया। यह आदमी कुछ हो गया। इसने कुछ होने को स्वीकार कर लिया, समबडीनेस आ गई, नथिंगनेस खो गई। अगर कृष्ण से कोई जाकर पूछे कि तुम कौन हो, तो कृष्ण कोई सार्थक उत्तर नहीं दे सकते हैं। चुप ही रह सकते हैं। कोई भी उत्तर देंगे तो चुनाव शुरू हो जाएगा। वे कुछ हो जाएंगे। असल में जिसको सब कुछ होना है, उसे ना-कुछ होने की तैयारी चाहिए। झेन फकीरों के बीच एक कोड है। वे कहते हैं: वन हू लांग्स टु बी एवरीव्हेयर, मस्ट नॉट बी एनीव्हेयर। जिसे सब कहीं होना हो, उसे कहीं नहीं होना चाहिए। कृष्ण चुनावरहित हैं, कृष्ण समग्र हैं, इंटीग्रेटेड हैं और इसीलिए पूर्ण हैं।
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